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________________ PrapanARPERSO900000CROOMORROR द्रव्यसंग्रह. १७६ सम्मइंसण णाणं, चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे ।। ववहारा णिच्चयदो, तत्तियमइओ णिओ अप्पा॥३९॥ छप्पय. सम्यकदरशप्रमाण, ज्ञान पुनि सम्यक सोह। अरु सम्यक चारित्र, त्रिविध कारण शिव जो है ॥ नय व्यवहार वखानि, कह्यो जिन आगम जैसे। निह, नय अब सुनहु, कहहुं कछु लच्छन तैसे ॥ दर्शन सुज्ञान चारित्रमय, यह है परम स्वरूप मम । कारणसु मोक्षको आपु तै, चिद्विलास चिद्रूपक्रम ॥ ३९ ॥ रयणत्तयं ण वइ, अप्पाणं मुयत्तु अण्णदवियमि ॥ तह्मा तत्तिय मइओ, होदिहु मोक्खस्स कारणं आदा॥४०॥ कवित्त. E जीव व्यतिरेक ये रतनत्रय आदि गुण, अन्य जड़द्रव्यनिमें नेकुहू न पाइये । तातै गज्ञानचर्ण आतमको रूपवर्ण, त्रिगुहै णको मूलधर्ण चिदानंद ध्याइये ॥ निश्चनय मोक्षको जु कारण है आप सदा, आपनो सुभाव मोक्ष आपमें लखाइये । जैसें है जैनवैनमें बखाने भेदभाव ऐन, नैनसो निहार 'भैया' भेद र यो वताइये ॥ ४०॥ जीवादीसद्दहणं, सम्मत्तं रूवमप्पणे तं तु॥ दुरभिणिवेसविनुकं,णाणं सम्मखु होदि सदिजमि॥४१॥ जीवादि पदार्थनिकी जॉन सरधानरूप, रुचि परतीति होय निजपरभास. है । ताको नाम सम्यक कहा है शुद्ध दरशन, जाके सरधाने विपरीत बुद्धि नाश है ॥ आतम स्वरूपको सुध्यान JanwarRRRRRRENOPARDARPAMPIERROROS EasierencovembranconvenwondentarvasanaPADArmerawatsapinaDeonawanalesamang. Metsaven er et bedreboererateboardbog dobre pecados cat egoria de segona
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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