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सूचावत्तीसी. जन ऊपर जम जोर है, जिनसों जम हु डराय ॥ तिनके पद जो सेइये, जमकी कहा वसाय ॥२६॥ जिनके पदको सेवते, निजपद परगट होय ॥ तिनते बडो न दूसरो, और जगतमें कोय ॥२७॥ निजपद परगट होत ही, शिवपद मिलै सुभाय ।। जनम मरन बहु दुख मिटै, जम विलख्यो है जाय॥२८॥ जम जीतेत जीवको, सुख अनंत ध्रुव होय ॥ बहुर न कबहू, सोयवो, जगे कहावें सोय ॥ २९ ॥ जम जीते जीते ग्रह, जागे वहै प्रमान ॥ वह सवन शिरमुकट है, चेतन धर तिहध्यान ॥ ३० ॥ ध्यान धरत परब्रह्मको, तोहि परमपद होय ॥ तुहू कहावै सिद्धमय, और कह कहा कोय ।। ३१ ।। चेतन ढील न कीजिये, धरहु ब्रह्मको ध्यान ॥ सुख अनंत शिवलोकमें, प्रगटै महा कल्यान ॥ ३२॥ इह विधि जो जागै पुरुप, निज हग कर परकास ॥ तिहँ पायो सुख शास्वतो,कहै "भगोतीदास ॥ ३३ ॥ उग्रसेनपुर अवनि, शोभत मुकट समान । तिह थानक रचना कही, समुझ लेहु गुणवान ॥ ३४ ॥
इति सुपनबत्तीसी ।
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अथ सूत्रावत्तीसी लिख्यते। .
. .. दोहा. नमस्कार जिन देवको, करों दुई करजोर ह
सुवा बतीसीं सुरस में, कई: अग्निदलमोर ॥१॥ Pawanwroomparavaanswoopanaeronomwwwand