________________
les
p
RAPPROOPERSonwaneman १२५२
ब्रह्मविलासमें दर्शन ज्ञान विराजतो, देखो धर निज ध्यान ॥१४५॥ देखनहारो ब्रह्म वह, घट घटमें परतच्छ ।
मिथ्यातमके नाशतें, सूझै सवको स्वच्छ ॥१४६।।, जैसो शिव तैसो इहाँ, भैया फेर न कोय ॥
देखो सम्यक नयनसों, प्रगट विराजै सोय ॥१४॥ निकट ज्ञानदृग देखतें, विकट चर्मदृग होय ।।
चिकट कटै जव रागकी, प्रगट चिदानंद जोय ॥१४॥ जिनवानी जो भगवती, दास तास जो कोय ॥ __सो पावहि सुखसास्वते, परम धर्म पद होय ॥१४९॥
संवत सत्र इक्यावने, नगर आगरे माहिं ॥ ___ भादों सुदि सुभ दोजको, वालख्याल प्रगटाहिं ॥१५०॥ सुरसमाहिं सव सुख वसै, कुरसमाहिं कछु नाहि ॥
दुरस वात इतनी यहै, पुरुष प्रगट समझांहिं ॥१५१॥ गुण लीजे गुणवंत नर, दोप न लीज्यो कोय ॥ जिनवानी हिरदै वसे, · सवको मंगल होय ॥१५॥
इति पंचेन्द्रियसंवाद । 'अथ ईश्वरनिर्णयपचीसी लिख्यते।
दोहा. परमेश्वर जो परमगुरु, परमज्योति जगदीस ॥
परममाव उर आन, वंदत हों नमि सीस ॥१॥ है ईश्वर ईश्वर सब कहै, ईश्वर लखै न कोय ॥
ईश्वर तो सो ही लखै, जो समदृष्टी होय ॥ २॥ : ब्रह्मा विष्णु महेश जे, ते पायें नहिं पार ॥ ए ता ईश्वरको और जन, क्यों पावै निरधार ॥३॥
&panpowewwWARRORRRORomeo
Chooseese Cheetootocococeboots Geese cheoeoeoeoego Go Goebecbaolococcdb6ee92
eneranpanacomasvanaPATRVADITORavethapancream
Earop