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ब्रह्मविलास में
ईर्ष्या समिति निहार, साधु चलै जु
भलेरी ॥
ते पावें शिवनार, सुखकी कीर्ति फलेरी, आँखिन० ॥ ५८ ॥ आँखिन विंद निहार, सम्यक शुद्ध लह्योरी ॥
गोत तीर्थकर धार, रावन नाम कह्योरी, आँखिन० ॥ ५९ ॥ चारों परतेक बुद्ध, देखत भाव फिरेरी ॥
लहि निज आतमशुद्ध, भवजल वेग तिरेरी, आँखिन० ॥ ६० ॥ पूरव भव आहार, देते दृष्टि परचोरी ||
इहि चौवीसी सार, अंस कुमर जु तरचोरी, आँखिन० ॥६२॥
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वाघिनि साधु विदार, दंतहि दृष्टि धरीरी ॥
पूरब भवहि निहार, त्यागन देह करीरी, आँखिन ० ॥ ६२ ॥ शालिभद्र सुकुमार, श्रेणिक दृष्टि परयोरी ॥
गहि संयमको भार, आतम काज करचोरी, आँखिन० ॥ ६३ ॥ देख्यो जुद्ध अकाज, दीक्षा बेग गहेरी ॥
पांडव तज सव राज, निज निधि वेग लहेरी, आंखन ० ॥ ६४ ॥ कहूं कहाँलों नाम, जीव अनेक तरेरी ॥ 'भैया' शिवपुर ठाम, आंखितें जाय बरेरी, आँखन० ॥ ६५ ॥ दोहा.
जीभ कहै रे आँखि तुम, काहे गर्व करांहि ॥
काजल कर जो रंगिये, तो हू नाहिं लजांहि ॥ ६६ ॥ कायर ज्यों डरती रहै, धीरज नहीं लगार ॥ वातवातमें रोयदे, वोलै गर्व अपार ॥ ६७ ॥ जहाँ तहाँ लागत फिरे, देख सलौनो रूप ॥ तेरे ही परसाद तैं, दुख पावै चिद्रूप ॥ ६८ ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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