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पंचेद्रियसंवाद.
भली बुरी सुनतो रहे, तो तुरत सनेह ॥ तो सम दुष्ट न दूसरो, धारी ऐसी देह ॥ ४७ ॥ दुष्टवचन सुन तो जैरे, महा क्रोध उपजंत ॥ तो प्रसाद जीव बहु, नरकन जाय परंत ॥ ४८ ॥ पहिले तुमको बेधिये, नरनारीके कान ॥
तोह नही लजात है, बहुर धेरै अभिमान ॥ ४९ ॥ काननकी बातें सुनी, सांची झुंठी होय ॥
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आँखिन देखी बात जो, तामें फेर न कोय ॥ ५० ॥ इन आंखिनसां देखिये, तीर्थकरको रूप ॥
सुख असंख्य हिरंदे लसै, सो जानै चिद्रूप ॥ ५१ ॥ आँखिन लख रक्षा करै, उपजै पुण्य अपार ॥
आँखिनके परसादसों, सुखी होत संसार ॥ ५२ ॥ आँखिन सब देखिये, तात मात सुत भ्रात ॥ देव गुरू अरु ग्रन्थ सब, आँखिनतें विख्यात ॥ ५३ ॥ ढाल - " बनमालीके बाग चंपो मौलि रह्योरी" ए देशी । आंखिनके परसाद, देखे लोक सवैरी ॥ आवै निजपद याद, प्रतिमा पेखत बेरी, आंखनके० ॥ ५४ ॥ देखूं हग सिद्धान्त, ग्रन्थ अनेक कह्यारी ॥ जे भाख्या भगवंत, दर्वित तेह लह्यारी, आंखन० ॥ ५५ ॥ समवशरणकी रिद्धि, देखत हर्प धनोरी || प्रभु दर्शन फलसिद्धि, नाटक कौन गिनोरी, आँखन ० ॥५६॥ जिन मंदिर जयकार, प्रतिमा परम बनीरी ॥ देखत हर्प अपार, श्रुति नहिं जाहिं भनीरी, आँखन ० ॥५७॥
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