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PROPOARIORDPRORSPOROpeowapcowPOR सम्यक्त्वपचीसिका.
२२३ क्षय उपसमके तीन प्रकार । तिनके नाम कई निरधार ॥ एअनतानुवंधी चौकरी । जिह जिय शक्ति फोरके ख़री ॥ ४ ॥
महा मिथ्यात मिश्र मिथ्यात । समै प्रकृति उपशम विख्यात॥ क्षय उपशम समकित तस नाम । अव दूजो वरनों इहि ठाम ॥५॥
अनतानु जे चार कपाय । महा मिथ्यात्व मिले क्षय जाय॥ है दोय प्रकृति उपसम ह रहै । तासांक्षय उपसम पुनि कह॥६॥
क्षय पट् जाहिं प्रकृति जिहँ ठाम । समै प्रकृति उपसम तिहनाम।। है ये क्षय उपशम तिहुँ विधि कहे । अव वेदक वरनों सरदहै ॥७॥ है
जहाँ चार प्रकृति खप रहे । द्वै उपशम डुक वेर्दक लहै ॥ है क्षयउपसमवेदक तिहँ नाव । कहे ग्रंथमें हैं बहु व ॥ ८॥ पांच खपै उपशम है एक । समैप्रकृति वेदै गहि टेक ॥ दूजो भेद यह सिरदार । अवतीजैकोसुनहु विचार ॥९॥
छहों प्रकृति जामे क्षय जाहिं । समै मिथ्यात्व मिटै तह नाहि ॥ इक्षायक वेदक · लच्छन एह । कहे ग्रंथमें नहिं संदेह ॥१०॥ है उपशमवेदक कहिये तहाँ । छह उपशम इक वेदै जहां ॥
क्षायकसमकिततब जिय लहै । सातो प्रकृति मूलसों दहै॥११॥ जब लग ये प्रकृति नहिं जाती। तब लग कहिये जीव मिथ्याती॥ तिनके दूर कियेते जीव । सम्यक दृष्टी कहे सदीवा॥१२॥ उनकी थिति पूरी जव होय । तब वे खिर फिर नहिं सोयः ।। खिरके निजगुण परगट लहै । सो गुण काल अनन्तो रहै १३ ॥
जे गुण प्रगट भये तज कर्म । ते सब जानो जियको धर्म ॥ र जैसो प्रभु देखौ · भगवान । तैसो हैं इनके सरधान ॥१४॥
सम्यकवंत जीव बैरागी । भावन सों सवही का त्यागी ॥ निव्रत पक्ष कर व्रत नाही । अप्रत्याख्यान उदै घटमाही ॥१५॥ (१) सम्यक्प्रकृति मिथ्यात्व (२) उदयरूप.
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