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ब्रह्मविलासमें. ऋद्धि सिद्धि अनुसरै, विविध विद्या परकासै।
निजनिधि लहै प्रकाश, ज्ञान प्रभुता गुण भासे ।। अरु कर्म शत्रु सब जीतके, केवलि पद महिमा वरै । सो जैनधर्म जयवंत जग, जास हृदय ध्रुव संचरै ॥ २० ॥
जैनधर्म परसाद, जीव मिथ्यामति खंडै । . जैनधर्म परसाद, प्रकृति उर सात विहंडे । जैनधर्म परसाद द्रव्यषटको पहिचाने।
जैनधर्म परसाद, आप परको ध्रुव ठाने । , जैनधर्म परसाद लहि, निजस्वरूप अनुभव करें। 'भैया' अनंत सुख भोगवै, जैन धर्म जो मन धरै ॥ २१ ॥
जैनधर्म परसाद, जीव सव कर्म खपावै । जैनधर्म परसाद, जीव पंचमि गति पावै ।। जैनधर्म परसाद, बहुरि भवमें नहिं आवै।
जैनधर्म परसाद, आप परब्रह्म कहावै ॥ श्री जैनधर्म परसादतें, सुख अनंत विलसंत ध्रुव । सो जैनधर्म जयवंत जग, भैया जिहँ घट प्रगट हुव ॥ २२ ॥
करिना
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सुन मेरे मीत तू निचिंत हैके कहा बैठो, तेरे पीछे काम श-हूँ त्रु लागे अति जोर हैं। छिन छिन ज्ञान निधि लेत अति छीन है तेरी , डारत अंधेरी भैया किये जात भोर हैं। जागवो तो जाग. अब कहत पुकारें तोहि, ज्ञान नैन खोल देख पास तेरे चोर हैं। फोरके शकति निज चोरको मरोर वांधि, तोसे बलवान आगे चोर हकै को रहैं ॥ २३ ॥. . . . . Pawwwpowdo/
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