________________
१२३
MP4M-.
wom
RanavaranpuranabranepanipranawwantrvasanapanuaranterwescorenavranoapAORE
REVEAWARwanawrenownewwwppamopanNS
रागादिनिर्णयाटक. अथ रागादिनिर्णयाटक लिख्यते ।
'दोहा. सर्व ज्ञेय ज्ञायक परम, केवल ज्ञान जिनंद ॥ तासु चरन बंदन करों, मन घर परमानंद ॥१॥
मात्रिक कवित्त. रागद्वेप मोहकी परणति, है अनादि नहिं मूल स्वभाव ।
चंतन शुभ्र फटिक मणि जैसे, रागादिक ज्यों रंग लगाव ॥ ६ वाही रंग सकल जग मोहत, सो मिथ्यामति नाम कहाव । ३ समदृष्टी सो लखें दुई दल, यथायोग्य वरतै कर न्याव ॥२॥
दोहा. जो रागादिक जीवके, है कहुं मूल स्वभाव ॥ तो होते शिव लोकमें, देख चतुर कर न्याव ॥३॥ सबहि कर्मत भिन्न है, जीव जगतके माहिं ॥ निश्चय नयंसों देखिये, फरक रंच कहुं नाहिं ॥४॥ रागादिकसों भिन्न जव, जीव भयो जिहँ काल ॥ तव तिहँ पायो मुकति पद, तोरि कर्मके जाल ॥५॥ ये हि कर्मके मूल हैं, राग द्वेप परिणाम ॥ इनहीसें सव होत हैं, कर्म वन्धके काम ॥६॥ ... चान्द्रायण छन्द. ( २५ मात्रा) रागी बांध करम भरमकी भरनसों।
वैरागी निर्वद्य स्वरूपाचरनसों ॥ . यह बंध अरु मोक्ष कहीं समुझायके । देखो चतुरं सुजान ज्ञान.उपज़ायके ॥७॥
! HORosannRespandamom/pance
an den Broeroren wordterentreprenewcoweverteretana 3