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________________ &nianprasanapoompancpronocomwansweapoooooooooooops PROPERPROMPARDARPANJORDARPopmeans आश्चर्यचतुर्दशी. कवित्त. देहधारी भगवान करै नाहीं खान पान, रहै कोटि पूरवलों है जगमें प्रसिधि है । बोलत अमोल बोल जीभ होठ हालै नाहि, । देखै अरु जानै सव इन्द्रीन अवधि है । डोलत फिरत रहै डगन भरत कहै, परसंग त्यागी संग देखो केती रिधि है। ऐसी अचरज वात मिथ्या उर कैसे मात, जानै सांची दृष्टिवारो जाके । ज्ञाननिधि है ॥२॥ देखत जिनंदजूको देखत स्वरूप निज, देखत है लोकालोक, ज्ञान उपजायके । वोलत है वोल ऐसे बोलत न कोउ ऐसें, तीन है लोक कथनको देत है बतायके ॥ छहों काय राखिवेकी सत्य है वैन भाखिवेकी, पर द्रव्य नाखिवेकी कहै समुझायके । करम नॐ सायवेकी आप:निधि पायवेकी, सुखसों अघायवेकी रिद्धि दैलखायके ॥३॥ वहिलपिका-छप्पय. कहा सरसुतिके कंध? कहो छिन भंगुर को है। काननको कहा नाम? वहुतसों कहियत जो है? ॥ भूपतिके संग कहा ? साधु राजै किहँ थानक ? । लच्छिय विरथी कहाँ ? कहा रेसम सम वानक? ॥ श्रेयांस राय कीन्हों कहा? सो कीजे भविजन ददा। सव अर्थ अंत यह त सुन, वीतराग सेवहु सदा॥४॥ भावार्थ-सुनवीत राग सेव होस दा-इसके तीसरे और दूसरे अक्षरसे । वीन,चौथे और दूसरेसे तन, पांचवें दूसरेसे रान, छटवें दूसरेसे गन, सातवें , sabrdaspreparoromoooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo S ) मिथ्यातीके. POROPOROREpp/PRODAMARPORORPORPOOR
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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