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मोहभ्रमांक.
Seto
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स छेदन सु ग्रथनिमें गाये हैं | विष्णु आप आय अवतार लीनों जलमाहिं, जल कहो काहे पैं हो काहु न बताये हैं । सृष्टि रची पीछैकर पहिले पौन पानी होंहिं, इतनोहू ज्ञान नाहिं ऐसे भरमाये हैं ॥ ४ ॥
कान्ह करी कुंजनमें केंलि परनारिनसों, ऐसे व्यभिचारिन को ईश कैसे कहिये । महादेव नागे होय नाचै सो प्रसिद्ध वात, तऊ न लजात कहै ईश अंश लहिये ॥ ब्रह्माने तिलोत्तमाको देख मुख चार कीन्हे, इतनों विचार नाहीं इन्हें ऐसी चहिये । कहत है ईश जगदीश ए बनाये आप, इनहीके चरण त्रिकाल गहिरहिये ॥ ५ ॥
अर्जुनको तीनों लोक मुखमें दिखाये जिन, प्रद्युमन हरे सुधि कहूं न लहत हैं। शंकर जुशीस काट ढूंढत गणेशहू को, तीन लोक मैं न कहूं गज ले गहत हैं | ब्रह्मा जू की सृष्टिको चुराय जब गये चोर, तीन लोक करे ता ढूंढत रहत हैं । रामचंद्र सीता सुधि पूछै पशुपक्षी पैं, ताको लोक जगतके ईश्वर कहत हैं ॥ ६ ॥
मच्छको स्वरूप धर गये जो पताल माहिं, चारों वेद चोर पास आन यहां धरे हैं। कच्छ है अठासी लक्ष योजनकी देह धरी, छोटेसे समुद्र में मथान पीठ करे हैं । पृथ्वीको पताल तैं लै आये आप सूअर है, सिंहको स्वरूप धार हिर्णांकुश हरे हैं । परमेश पर्मगुरु अविनाशी जोतरूप, ताहि कहैं पशु देह आय अवतरे हैं ॥ ७ ॥
राम औ परशुराम आपुसमें युद्ध कीनों, दोऊ अवतारी अंश ईश्वरके लरे हैं। कृष्ण अवतार माहिं तीन लोक राखत है, द्वा
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