________________
abse
asdeas Stab ga át sa
Jats sean seat avat
sattv
Ge
निर्वाणकांडभाषा.
૪૧
जो बलिभद्र मुकतिमें गये । आठ कोड़ि मुनि औरहिं भये ॥ श्री गजपंथ शिखर सुविशाल । तिनके चरण नमूं तिहुं काल ॥ ८ ॥ राम हनू सुग्रीव सुडील | गवगवाख्य नील महानील ॥ कोड़ निन्याणव मुक्तिप्रमान । तुंगी गिर बंदों घर ध्यान ॥९॥ नंग अनंग कुमार सुजान। पंचकोड़ अरु अर्द्ध प्रवान ॥ मुक्ति गये शिहुनागिरीस । ते बंदों त्रिभुवनपति ईश ॥ १० ॥ रावनके सुत आदि कुमार । मुक्ति भये रेवातट सार ॥ कोटि पंच अरु लाखपचास । ते वंदो धर परम हुलास ॥११॥ रेवानदी सिद्धवर कूट । पश्चिम दिशा देह जहँ छूट ॥ द्वै चक्री दश काम कुमार । औठकोडि बंदों भवपार ||१२|| सुचंग । दक्षिण दिशि गिर चूल उतंग || कर्ण । ते बंदों भवसागर तर्ण ॥ १३ ॥ चार । पावागिरिवर शिखरमझार ॥ पास । मुक्ति गये बंदों नित तास ||१४||
1
SVE
बड़वानी बड़नगर इंद्रजीत अरु कुंभ जु सुवरणभद्र आदि मुनि चलना नदीतीरके वडगाम
फलहोड़ी
अनूप । पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप || गुरुदत्तादि मुनीश्वर जहां । मुक्ति गये बंदों नित तहां ॥१५॥ ॥ वाल महाबाल मुनि दोय । नाग कुमार मिले त्रय होय ॥ श्रीअष्टापद मुकति मझार । ते बंदों नित सुरत संभार ॥१६॥ अचला पुरकी दिशा ईशानं । तहाँ मेढ़गिरि नाम प्रधान ॥ साढे तीन कोटि मुनिराय । तिनके चरन नमूं चितलाय ॥१७॥ ६ वंशस्थल वनके ढिग होय । पश्चिम दिश कुंथलगिरि सोय ॥ कुल भूषण देश भूषण नाम । तिनके चरणनि करहुं प्रणाम ॥१८
(२) साढेतीन करोड.
ॐॐॐ