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ब्रह्मविलासमे .
दोहा. जैसो शिवखेतहि वसै, तैसो या तनमाहिं । निश्चय दृष्टि निहारतें, फेर रंच कहुं नाहिं ॥ १४ ॥
इति सिद्धचतुर्दशी.
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अथ निर्वाणकांडभाषा लिख्यते।
दोहा. वीतराग वंदों सदा, भावसहित शिरनाय । कहूं कांड निर्वानकी, भाषा विविध वनाय ॥१॥
चौपई. अष्टापद आदीश्वर स्वामि । वासुपूज्य चंपापुरि नामि ॥ नेमिनाथ स्वामी गिरनार । वंदों भावभगति उर धार ॥२॥ चर्म तिर्थकर चर्म शरीर । पावापुरि स्वामी महावीर ।। शिखरसमेद जिनेश्वर वीस । भावसहित वंदो जगदीस ॥३॥ वरदत औ वर इंद मुनिंद । सायरदत्त आदि गुणवृंद ॥ नगर तारवर मुनि उठे कोड़। वंदों भावसहित करजोड़ ॥४॥
श्रीगिरनार शिखर विख्यात। कोटि बहत्तर अरु सौ सात ॥ ॐ संयु प्रद्युम्न कुमर द्वै भाय । अनुरुद्ध आदि नमूं तसपाय ॥५॥
रामचंद्रके सुत द्वै बीर । लाड नरिंद आदि गुणधीर ॥ ह पंचकोड़ मुनि मुक्तिमझार। पावागिर वंदों निरधार ॥६॥ पांडव तीन द्रविड़ राजान । आठकोड मुनि मुकतिप्रमान ।। श्रीशत्रुजयगिरिक शीस । भावसहित वंदो निशदीस ॥७॥
(1) साढे तीन करोड, growonweaponomenoramPRONPawwwers
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