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ROORamRamparnwapenPownPOODAPOOR. लोकाकाशक्षेत्रपरिमाणकथन.
१३३ ९ . अथ लोकाकाशक्षेत्रपरिमाणकथन लिख्यते ।
चौपाई. प्रणमूं परमदेवके पाय । मन वच भावसहित शिर नाय॥
लोक क्षेत्रकी गिनती कहूं । राजू भेद जहाते लहूं ॥१॥ ९ घनाकार सब कह्यो वखान । त्रयशत अरु तेतालिस मान ॥
ताके भेद कहूं समुझाय । श्री जिन आगमके जुपसाय|॥२॥ सिद्ध शिलातक गिनती करी । उपरिकी हद इह संग धरी ॥ अहमिंदर नवग्रीव विमान । तिह ऊपरके सवही जान ॥३॥ राजू ग्यारह धन आकार । देख्यो जिनवर ज्ञानमझार ॥ ताके तरहिं सुरग वसु जान । द्विक चतुकी संख्या उर आन॥४ ऊपरित तरको . हग देहु । गनती भेद समझ कर लेहु ॥ साढे अठ रज्जू द्विक एक । घनाकार सव लहहु विशेक।५॥ , दूजो द्विक साढे दश होय । तीजो साढे वारह सोय ॥ चौथो साढे चउदह कह्यो । द्विक चतु भेद जिनागमलयो ६ द्वै द्विक और कहूं विस्तार । ते राजू तेतीस निहार ॥ साढे शोरह इक इक जान । इमतेतीस दुईद्विक मान ॥७॥ सनत्कुमार महेन्द्र सुदीस । इन दुहुके साढे सैंतीस ॥
अब सुधर्म ईशान विमान । तिर्यक् लोक याहि महिजान॥८॥ ए मेरु चूलिकाते गन लही । राजू साढे उनइस कही। सव गिनती ऊपरकी दीस । राजू इक सो सैंतालीस ॥९॥
अब नीचें कहुं क्रमसें गुनो । जाके भेद जथारथ सुणो॥ में मेरू तलवासें गण लेह । सात नरकको वरणनजेह॥१०॥ . (१) प्रसादसे.
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