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ब्रह्मविलासमें
Anummmmmmmmmmmmmmmmmmms जानन लाग्यो सब विरतंत । जैसो कछु देख्यो भगवंत ॥ जिन आगमके वचन प्रमान । तामहिंबुद्धि अहै परधान॥६॥ है धर्म महागुण जाके होय । तातै निपुण न दूजो कोय । जाके हृदय भयो परकाश । ताकी कुमतिगईसवनाश॥६॥ चौदह विद्यामें जो आदि । ब्रह्मज्ञान सो कह्यो मरजाद ॥ है तात जो परवीन प्रधान । सो समदृष्टीविन नहिं आन ६५ मिथ्याती जिय भ्रममें रहै । सो प्रवीनता कैसे गहै ॥ ताते कथा यहै परमान । हैप्रवीन जियसम्यकवान॥६६॥ है इहि विधि मंजरी लगी अनेक । ज्ञानवंत धर देख विवेक ॥ है
जैसें द्रुम शोभै सहकार । तैसें ज्ञान गुणनके भार ॥६॥ ॐ यात प्रथम मंजरिका कही । इहिद्रुम शिवफल लागहि सही
जाके घट समकित परकाश । ताके ये गुन होहि निवास ॥६॥ है सम्यग्दर्श लहै जो जीव । सो शिवरूपी कह्यो सदीव ॥ है. ताते सम्यक ज्ञान प्रमान । जातें शिवफल होय निदान ६९ ॥
दोहा. कही ज्ञानगुण मंजरी, जिनमतके अनुसार ॥ जो समुझहिं ओ सरदह, ते पावहिं भवपार ॥ ७॥ यामें निज आतम कथा, आतमगुण विस्तार ॥ तातें याहि निहारिये, लहिये आतम सार ॥ ७१॥ जो गुण सिद्ध महंतके, ते गुण निजमहिं जान ॥ भैया निश्चय निरखतें, फेर रंच जिनमान ॥७२॥ सत्रहसो चालीसके, उत्तम माघ हिमंत ॥ . आदि पक्ष दशमी सुदिन, मंगल कहो सिद्धत ॥ ७
इति गुणमंजरिका.
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