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________________ Prammam REPORwanpanwarupamahsenavaraanaanwDRONARIES जिनगुणमाला. -: दोहा. भैया सुख सागर परखि, निरखि ज्योति निजचन्द। मिथ्या नाशन चतुशि, पढ़त बढ़त आनन्द ॥ १४ ॥ इति मिथ्यातविध्वंसनचतुर्दशी। अथ जिनगुणमाला लिख्यते. दोहा. तीर्थंकर त्रिभुवन तिलक, तारक तरन जिनंद ॥ . तास चरन वंदन करौं, मनधर परमानंदं ॥१॥ गुण छीयालिस संयुगत, दोष अठारह नाश ।। ये लक्षण जा देवमें, नित प्रति वंदों तास ॥२॥ चौपई. दश गुण जासु जनमते होय प्रस्वेदादिक दोप.न कोय ॥ निर्मलता मलरहित शरीर । उज्वल रुधिर वरण जिम खीर ॥३॥ वज्र वृपभ नाराच प्रमान । सम सु चतुर संस्थान बखान ॥ शोभन रूप महा दुतिवन्त । परम सुगन्ध शरीर वसंत ॥४॥ सहस अठोत्तर लच्छन जास । बल अनंत वपु दीखै तास ॥ हितमित वचन सुधासे झरै। तास चरन भवि वंदन करें ॥५॥ दश गुण केवल होत प्रकाश । परम सुभिक्ष चहूं दिश. भास ॥ द्वयसौ जोजन मान प्रमान । चलत गगनमें श्रीभगवान ॥६॥ ६ वपुते प्राणि घात नहिं होय। आहारादिक क्रिया न कोय ।। नविन उपसर्ग परम सुखकार । चहुं दिश आनन दीखहिं चार ॥७॥ सब विद्या स्वामी जग वीर । छाया वर्जित जासु शरीर ।। नख अरु केश व नहिं कहीं। नेत्र पलंक.पल लागै नहीं: ॥ ८॥ sonpararwasanaporapanesentarvanaprivasana ManipranawarasmasansaponsenavranusransmewanapaavanapanapranapranA EasRVacaaaaaGOODaesapac000000000000000003 m a
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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