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REPORDPROppoNDISenpanwANPORNWRODE ११८
ब्रह्मविलासमें सतगुरु वचन धारिले अबके, जातें मोह विलाय ॥ । तव प्रगटै आतम रस भैया, सो निश्चय ठहराय, चेतन० ॥३॥
॥ इति परमार्थ पदपंक्ति ॥ ' अथ गुरु शिष्य प्रश्नोत्तर,
दोहा. कहुं दिव्यध्वनि शिष्य सुनि, आयो गुरुके पास ।।
पूज्य सुनहु इक बीनती, अचरजकी अरदास ॥१॥ आज अचंभी में सुनो, एक नगरके बीच ॥
राजा रिपुमें छिप रह्यो, राग करें सब नीच ॥ २॥ नीचसु राज्य करै जहां, तहां भूप बलहीन ।। ___ अपनो जोर चलै नहीं, उनहीके आधीन ॥३॥ वे याको मानें नहीं, यह वासों रसलीन ॥
सत्तर कोडाकोडिलों, बंदीखाने दीन ॥ ४ ॥ बंदीवान समान नृप, कर राख्यो उहि और ॥ . वाको जोर चलै नहीं, उनहींके सिरमौर ॥५॥ वे जो आज्ञा देत हैं, सोइ करें यह काम ॥ __ आप न जाने भूप मैं, ऐसो है चित भ्राम ॥ ६॥ उनकी चेरीसों रचे, तजि निज नारि निधान । ___ कहो स्वामि सो कौन वह, जिनको ऐसो ज्ञान ॥ ७॥
कौन देश राजा कवन, को रिपु को कुल नारि ॥ ___ को दासी कहु कृपाकर, याको भेद विचारि ॥८॥
- गुरुरुवाच. __ गुरु बोले समकित बिना, कोज पावै नाहि ॥ S: । सवै ऋद्धि इक गैर है, काया नगरीमाहिं ॥९॥ Ver/AROOPRO/AROOPeppORPORPPeopard
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