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.............. चतुर्विशतिजिनस्तुति.. अर्जुनमात मही सब जाने, पिता जामु हैदक्षिण राय.! श्रीअरनाथ नगर गजपुरवर, वंदें भव्य जिनेश्वर पाय ॥ १८ ॥
श्रीमल्लिजिनस्तुति. मल्लिनाथ मिथुलानगरीपति, अद्भुत रूप जिनेन्द्र विराजे।। कुंभराय परभावति जननी, लच्छन कलश चरण सो छाजे ।। सुरपति आय शीश नित ना, कंचन कमल धरै प्रभु कानें। समोशरण गह गहे जिनेसुर, वानी सुन मिथ्यातम. भाजे ॥ १९ ॥
श्रीमुनिमुत्रनजिनस्तुति-सिंहावलोकन छप्पय, . मुनिसुव्रत जिन नाव, नाव त्रिभुवन जस पै । जप सुरनर जाप, जाप जपि पाप जु कंप ।। कंप अरिकुल रीति, रीति जिन नीति प्रकास। परकाश घट सुमति, सुमति राजग्रह वासे ॥ वास जिनवर सिद्ध चित, चितवत कूरम चरण तन । तन पदमावति पूजजिन, जिनसेवक वर्दै मुमुनि ॥ २०॥
श्रीनमिनिनम्नुति-मात्रिक कवित्त. नम्यनाथ नीलोत्पललच्छन, मिथुलानाव नगर परसिद्ध । र विजय राय परभावति जननी, मुमिरे पावै अविचलरिद्ध । केवल ज्ञान जिनेश्वर बंदत, होत सदा समकितकी वृद्धि । भावसहित जो जिनको पूज, तिन घरहोय सदानवनिद्धिः ॥२१॥ . . श्रीनमिजिनस्तुति कवित्त.
नमिनाथ नाथ नेमि काहसों न राख प्रेम, मनवच सदा एम रह दशा जोगकी । समुद्रके सुत धीर सिंधुज्यों गंभीर वीर, संदेख रहे चर्ण तीर लिप्सा नाही भोगकी ।। सौरिपुर शिवामाय ज
ग जिननाथ राय नीलरत्न जामु काय, लख वात लोगकी। अनंForponompRNWAPARWARIDWARDROIN
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