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ब्रह्मविलासमें पिता जास श्रीसैन नरेश्वर, नगर अजोध्या जन्में सोय ॥ . गुण अनंत बलरूप विराजे, सिद्धभये अरिक कुल खोय । भावसहित भविप्रानी वंदत,हे प्रभुशिवपदहमको होय ॥१४॥
श्रीधर्मजिनस्तुति. लच्छन बज्र रतनपुर उपजे, धर्मनाथ तीर्थकर धीर।। भानुमहीपतिके कुलमंडन, सुवृता मात बडे बलवीर ॥ समवशरनमें देशना देते, प्रभुधुनि जिम सागर गंभीर । चरन सदा भवि पानी वंदत, जैजै जिनवर चरमशरीर ॥ १५ ॥
श्रीशान्तिनिनस्तुति-सिंहावलोकन छप्पय. जिनवर ताराचंद, चंदतारा नित वंदै । वंदै सुरनर कोटि कोटि, सुरवृंद अनंदै ।। आनंद मगन जु आप, आप हस्तिनपुर आये। आये शांति जिनदेव, देव सवही सुख पाये ॥ पाये सुमात ऐरारतन, तन कंचन विश्वसेन गिन । गिन सुकोषगुनको वन्यो, वन्योसुतारन तरन जिन॥१६॥
श्रीकुंथुनिनस्तुति. मात्रिक कवित्त. पदमासन भगवंत विराजहिं, केवल वयन देशना देहि। गजपुर नगर सूरसिंह भूपति, ताके नंद अभयपद देहिं॥ कुंथुनाथ तीर्थकर जगमें, सब प्रानिनको आनंद देहिं । जस श्रीवत्सकलंछन सो है,भव्य त्रिकालहि वंदन देहि ॥१७॥
श्रीअरःनिनस्तुति. नंद्यावर्त्त सुलच्छन सोहै, सुरपति सेव करै नित आय । Do संघ चतुर्विध देशना सुनते, वैरभाव नहिं रहै सुभाय ॥ orenoconcensowerpeparwareneswarapars
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