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राग गोडी-तीन ताल
धर्मामृत
तोले वेर बेर फिर आयेंगे, जीउ जीवन मेरे प्यारे पियुकी, जो जो सोज न पावेंगे ॥ तो० १ ॥
बिरह दिवानी फिरुं हुं ढूंढती, सेज न साज सुहावेंगे । रूप रंग जोबन मेरी सहियो, पियु बिन कैसे देह दिखावेंगे ॥ तो ० २ ॥
नाथ निरंजन के रंजन कु, बोत सिणगार बनायेंगे | कर ले बीना नाद नगीना, मोहन के गुन गावेंगे ॥ तो ० ३ ॥ देखत पियुकुं मणि मुगताफल, भरी भरी थाल बघावेंगे । प्रेम के प्याले ज्ञाननी चाले, विरह की प्यास बुझावेंगे ॥ तो ० ४ ॥
सदा रही मेरे जिउ में पिउजी, पिउमें जिउ मिलावेंगे । विनय ज्योतिसें ज्योत मिलेगी, तब इहां वेह न आवेंगे || तो ० ५ ॥