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ज्ञानानन्द
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राग गौड सारंग-तीन ताल ज्ञान की दृष्टि निहालो, वालम, तुम अंतर दृष्टि निहालो । वा० टेक॥
बाह्य दृष्टि देखे सो मूढा, कार्य नहि निहालो । धरम धरम कर घर घर भटके, नाहि धरम दिखालो ।। वा० १॥ बाहिर दृष्टि योगवियोगे, होत महामतवालो । कायर नरे जिम मदमतवालो, सुख विभाव निहालो ॥ वा० २ ॥
बाहिर दृष्टि योगें भवि जन, संसृति वास रहानो। तिनतें नबनिधि चारित आदर, ज्ञानानंद प्रमानो ॥ वा० ३॥