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ज्ञानानन्द
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(१८)
राग आसा (मांड ) - तीन ताल
वा दिनकुं नहिं जाना अवतक, कैसा ध्यान लगाया रे ॥ वा० टेक !!
जटा वधारी भस्म लगाइ, गंगा तीर रहाया रे ।
ऊर्ध बाह आतापना लेई, योगी नाम धराया रे ॥ वा० ॥ १ ॥
चार वेद, ध्वनि सूत धार कर, बामण नाम धराया रे शासतर पढके झगडे जीते, पंडित नाम रहाया रे ॥ वा० ॥ २ ॥
सुन्नत करके अल्ला बंदे, सीया सुन्नी कहाया रे । चाको रूप न जाने कोइ नवि केइ बतलाया रे ॥ वा० ॥ ३ ॥
जे केइ बाको रूप पहिचाने, तेहि ज साच जनाया रे । ज्ञानानंद निधि अनुभव योगें, ज्ञानी नाम सुहाया रे ॥ वा० ॥ ४ ॥