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ज्ञानानन्द
(१४)
राग टोडी - तीन ताल
दूर रहो तम दूर रहो तम दूर रहो, मोसुं तो तम दूर रहो री ॥ दू० टेक ॥
इतने दिन अमने दुःख दीघुं,
थारे संग कर सुख न लहो री ॥ दू० १ ॥
तीन लोक की ठगनी तूं ही,
तुज सम नहीं कोई एहवो करे री ।
मीठो बोली हिरिदय पैसे,
लाड करे बहु भांत परे री ॥ दू० २ ॥
था हवे तावे सागर में तुं, पाछे गोतो देय टरेरी ।
तुज कुटिला का कवन भरोसा,
बोलत ही तुं घात करे री ॥ दू० ३ ॥
इहां सेती तुं दूर परी जा,
इहां' थारी मति नांह लहेरी ।
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चारित ज्ञानानंद रखवालो,
अम प्यारी मोरे पास रहे री ॥ दू० ४ ॥
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