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भजन ९१ वां
२३९. लवरी -- बकवाद - - बहु बोलना
धर्मामृत
सं०-‘लप्' प्रा०--'लव्' । प्रस्तुत 'लव्' धातु 'लवरी' का मूल है । '२' प्रत्यय स्वार्थिक है । २४०. झगडो - कलह
'झगडा' की व्युत्पत्ति अनवगत है । परन्तु देशीनाममाला में " विद्दवियम्मि जगढिओ " - ( वर्ग ३ गाथा ४४ ) 'कदर्थित' अर्थ में 'जगड' शब्द आता है । 'कदर्थना' और 'कलह' में अधिक साम्य है इससे संभव है कि प्रस्तुत 'झगडा' शब्द का 'जगडिअ ' से संबंध हो ।
२४१. दाम - पैसा
सं० द्रव्य - प्रा० दञ्च के साथ 'दाम' का संबंध होना शक्य है । दव्व - दाब - दाम । 'द्रव्य' शब्द धन का वाचक है और 'दाम' भी । कल्पित 'द्रम्म' शब्द से 'दाम' आता है परंतु 'द्रम्म' की व्युत्पत्ति निश्रित नहि । संभव है कि 'द्रम्म' वाच्य सिक्का तांबेका बनता हो और जिस तरह पैसावाचक 'तांविया' शब्द ताम्र से संबंध रखता है इसी तरह 'द्रम्भ' भी 'ताम्र' से संबंधित हो: ताम्र-तंत्र - तम्म- दम्म - द्रम्म । '२' कार प्रक्षिप्त मानना होगा ।
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२४२. वाळ- केश