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पाखंड
१६५] है" इतना लिख कर ही टीकाकार नहि रुकते किंतु वे 'पाखंड' की निरुक्ति भी इस प्रकार बताते हैं:
"पोलनाच त्रयो धर्मः 'पा' शब्देन निगयते । . तं खण्डयन्ति ते तस्मात् पाखण्डास्तेन हेतुना" ॥ अर्थात् 'पा' माने तीनों वेदो में कथित धर्म का पालन और 'खंड' माने वेदोक्त धर्म का खंडन-जो लोग वेदोक्त धर्म का खंडन करते है वे 'पाखण्ड' शब्द से बोधित होते है (पा-खंड --पाखंड ) 'पाखंड' की प्रस्तुत निरुक्ति कैसी विलक्षण है? अस्तु । टीकाकार ने तो सांप्रदायिक आवेश में आकर 'पाखंड' शब्द का मूल अर्थ को विकृत कर ही दिया। इसी प्रकार 'पाखंड' का अर्थ विकृत होते होते आज तो उसका अर्थ 'निरा असत्य 'धतिंग ढांग हो गया। दूसरे कारणों के साथ धार्मिक दुराग्रह भी शब्द के अर्थ को बदलने के लिए कीस प्रकार साधक होता है इस का प्रस्तुत 'पाखंड' शब्द अच्छा नमूना है। धर्मलिपि के आधार से 'पासंड' के मूल अर्थ का पता लगता है किंतु उसकी मूल व्युत्पत्ति का पता नहि लगता। क्या 'पाप+खंड' शब्द से 'पाखंड' शब्द बना होगा वा और कोई व्युत्पत्ति होगी यह अवश्य शोधनीय है। पापं खण्डयति इति पाखण्डः अर्थात् पाप का नाश करने वाला हो उसका नाम पाखंड ! पापख-हुपावखण्ड-पायखंड-पाखंड? सब संप्रदाय वाले पाप को नाज्ञा