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- धर्मामृत
राग जेतसिरि-देशी पारधीयानी सुणि पंजर के पंखीया रे, करी मीठे परिणाम रे; तुं है तोर रंगका रे, जपहु जिनेश्वर नाम रे। पं० मेरे जीउका सूडा, नीके रंगका रूडा एतो बोलो रे बोलो; । प्रभु के प्यारशं रे, खेलो करी एकतार रे । पं० १ उठत फिरत अनादिका रे, न मिटे भुख ने प्यास रे चार दिनका खेलना रे, या पंजर के वास रे । पं० २ इत उत चंच न लाईयें रे, रहीयें सहज सुभाय रे; मुनिसुव्रत प्रभु ध्याइयें रे, आनंदशुं चित्त लाय रे। पं० ३