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आनंदघन
देव, गुरु, धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे,
किम रहे शुद्ध श्रद्धा न आणे; शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया कही,
छारपरि लीपणो सरस जाणो।
धा० ५
पाप नहिं कोई उत्सूत्र भाषण जिसो, - धर्म नहिं कोई जग सूत्र सरिखो; सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे,
तेहनो शुद्ध चारित्र परीखो। धा० ६०
एह उपदेशनो सार संक्षेपथी,
जे नरो चित्तमें नित्य ध्यावे; ते नरो दिव्य बहु काळ सुख अनुभवी,
नियत आनंदघन राज पावे।
धा० ७