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यशोविजय.
(५९)
कब घर चेतन आगे मेरे, कब घर चेतन आगे ॥ टेक ॥
सखिरि लेवें बलैया बार बार ॥ मेरे कब० ॥ रेन दीना मानु ध्यान तुसाढा, कबहुं के दरस देखावेंगे।मेरे कव०॥१॥
विरह दीवानी फिरूं ढूंढती, पोउ पोउ करके पोकारेंगे। पिउ जाय मले ममता से, काल अनंत गमावेंगे। मेरे कब० ॥२॥
करुं एक उपाय में उधम, अनुभव मित्र बोलावेंगे। आय उपाय करके अनुभव, नाथ मेरा समझायेंगे ॥ मेरे कव०॥३॥
अनुभव मित्र कहे सुन साहेब, अरज एक अवधारेंगे । ममता त्याग समता घर अपनो, वेगे जाय अपनायेंगे।मेरे कव०॥४॥
अनुभव चेतन मित्र मले दोउ, सुमति निशान घुरावेंगे। विलसत सुख जस लीला में, अनुभव प्रीति जगावेंगे। मेरे कव०॥५॥