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मधुर संवाद
सूर्य अस्त हो गया था। एक आवाज आई। सब साधु इकट्ठ होगये। गुरुको वन्दना की। प्रतिक्रमण-दैनिक आत्मालोचन शुरू हुआ। मुहूर्त भर वही चला । फिर साधु उठ। गुरुके समीप आये। नम्र हो गुरुवन्दना की। अपने अपने स्थान चले गये । थोड़ी देर बाद कालुगणीने आपको आमन्त्रण दिया । आप आगे आये। आचार्यवरने एक सोरठा कहा
"सीखो विद्यासार, *परहो कर प्रमाद ने ।
बघसी बहु विस्तार, धार सीख धीरज मन ।।" और कहा कि यह सोरठा सबको सीखा देना। आपने
*
दूर ।