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विरक्तिके निमित्त अथवा कालुगणीने उसकी जितनी आवश्यकता आप पर समझी शायद किसी दूसरे पर उतनी न समझी हो। कुछ भी हो, आपकी उस तितिक्षाने अवश्य ही आपको आगे बढ़ाया-बहुत आगे बढ़ाया, हस न उलझे तो यह सही है।
वात्सल्य और अनुशासन इन दोनोंके समन्वयसे तितिक्षाके भाव पैदा होते है और उनसे जीवन विकासशील बनता है । कोरे वात्सल्यसे उच्छृङ्खलता और कोरे नियन्त्रसे प्रतिकारके भाव बनते है, यह एक सीधी-सादी बात है। ____ आप अपनी अनुशासन करनेकी आदत पर ही नहीं रहे, उसका पालन करनेकी भी आदत बना ली। यह उचित था । स्वयं अनुशासनको न पाले, उसे पलवानेकी भी आशा नहीं रखनी चाहिये। ___ आपकी दैनिक चर्या पर चम्पालालजी स्वामी निगरानी रखते थे। यह आवश्यक था या नहीं, इस पर हमे विचार नहीं करना है। उनमे अपने वन्धुके जीवन-विकासकी ममता थी, उत्तरदायित्वकी अनुभूति थी, यह देखना है। आप उनका बहुत सम्मान रखते। उनकी इच्छाका भी अतिक्रमण नहीं करते ।
अध्ययनसे संलग्न रहना, गुरु-उपासना करना, स्मरण करना, कम बोलना, अपने स्थान पर बैठे रहना, अनावश्यक भ्रमण न करना, हास्य-कुतूहल न करना-ये आपकी प्रकृतिगत प्रवृत्तिया थी।
कालुगणीने आपको सामुदायिक कार्य-विभाग ( जो सब ।