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शिष्य - सम्पदा
आचार्यश्री का जीवन एक विशिष्ट तपोभूमि है । उसका साधना-तेज दूसरोंके लिए सहज सिद्ध आकर्षण है । हजारों व्यक्ति त्यागके प्रति आकृष्ट हुए, यह उसीका फल है | श्रावकजीवनकी दोक्षा और अणुव्रती दीक्षाके अतिरिक्त महाव्रत दीक्षा भी कम व्यक्तियोंने नहीं ली ।
मुनि-जीवन निःसन्देह कठोर साधना है, तलवारकी धारपर चलना है, लोहे के चने चवाना है, फिर भी एक महान् साधक के नेतृत्व उस पर चलनेकी आत्म-प्रेरणा सहज प्रौढ बन जाती हे। युवक और बड़े बूढोंकी तो बात ही क्या ? छोटे-छोटे किशोर कुमारोंने आपके नेतृत्वमे इस अग्नि परीक्षाको सहज स्वीकार किया और सरल बनाया है । मानवताकी इस प्रयोग