________________
साम्प्रदायिक एकता
१४५ शिरमौर माने, जिससे पथ-दर्शन ले। सबके लिए पथदर्शक होना उसीके लिए सम्भव है, जो सबके लिए समान हो। "पियमप्पियं कस्स वि नो करेजा"-किसीका भी प्रिय-अप्रिय न करे, इस भावनाको साथ लिए चलनेवाला हो। लोग सोचगे कि किसीका प्रिय न करे, यह बात कैसी ? गहराईमे जायेंगे तो पता चलेगा कि साम्यवादकी जड यही है। किसी एकका प्रिय सम्पादन करने वाला दूसरेका अप्रिय भी कर सकता है। एक परिवार, समाज यो राष्ट्रके लिए प्रिय वात सोचनेवाला दूसरोंकी उपेक्षा किये विना नहीं रह सकता । अध्यात्मवादी प्रिय-अप्रियकी बात नहीं सोचता। वह सोचता है सबके साथ साम्य बर्ताव की। ___आचार्य श्री तुलसी इसी परम्पराके प्रतिनिधि है। आपकी सात्त्विक प्रेरणाओसे साम्य-सृष्टिका जो पल्लवन हो रहा है, वह किसी भी धार्मिकके लिए गौरवका विपय है। जैन-एकता ही नहीं, अपितु धार्मिक सम्प्रदायमात्रकी एकताके लिए आपने जो दृष्टि दो है, वह इतिहास-लेखकके लिए स्वर्णिम पंक्तियां होगी। ___ आप सम्प्रदायोंको मिलानेके पक्षपाती नहीं, उनके हृदयोंको एक सूत्रमे वाध देनेको उत्सुक है। धर्म-सम्प्रदायोमे आपसमे वैर-विरोध, ईर्ष्या और विचारोंकी असहिष्णुता न रहे तो वे अलग अलग रहकर भी विश्वके लिए वरदान बन सकते हैं। घंगालके खाद्य-मन्त्री श्रीप्रफुल्लचन्द्र सेनने आपसे पूछा-क्या सभी धर्म-सम्प्रदायोमे ऐक्य सम्भव है ? आपने कहा-हा है। उन्होने पूछा-कसे ? आपने कहा-विचार-भेद मिट जाय, सभी