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आचार्य श्री तुलसी
देता है । उसकी मस्तीने बाबा डाल और सुख-सपनीको चूर-चूर कर आगे बढता हे
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धर्म अमर है । धर्म सदा विजयी है । धर्ममे श्रद्धा और ज्ञान दोनों अपेक्षित है । इन भावनाओं का आपने 'अमर रहेगा वर्म हमारा', 'धर्मकी जय हो जय', 'सुज्ञानी दृढधर्मी बन जाओ' शीर्षक कविताओं मे दिलको हिलानेवाला विवेचन किया है ।
धर्म पर आक्षेप करनेवालोंको सक्रिय उत्तर देने के लिए आप वार्मिंकोको जो प्रेरणा देते है, उसमे आपकी सत्य-निष्ठा झलक पडती है
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"धार्मिक जन कायर वनजावे,
यह आक्षेप हृदय अकुलावे | मुख- भजन हो तुरत इसीका,
ऐसी क्रान्ति
उठाओ ।
वनजाश्रो ||
दुनिया को,
राह
दिखाओ ।
मुज्ञानी दृढ धार्मिक बनजाओ ।
मानवता से मनज
सुज्ञानी दृढधर्मी
भूली भटकी इस
सच्ची
कहाए,
मानवता धार्मिकता
चाहे |
बिन धार्मिकता जो मानवता,
दानवता
दरशाओ ।
सुज्ञानी दृढ धार्मिक बन जाओ ||