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कुछ वैसे थे, जो सब वस्तुओंको सरस्वरूप कहते थे। कुछ कहते थे बिना निमित्त पदार्थोकी उत्पत्ति होती है । कुछ कहते थे केवल एक तत्त्व सत् है। इन सब मतोंका निषेध करनेके कारण यह सिद्ध है कि न्यायदर्शनके कर्ता एकान्तवादको युक्त नहीं मानते थे । ' निःसन्देह नैयायिकोंके अनेकान्तवादमें और जैनोंके अनेकान्तवादमें भेद है। पर उसमें अत्यंत विरोध नहीं।
नैयायिकोंके अनुसार कुछ पदार्थ सर्वथा नित्य हैं और कुछ पदार्थ सर्वथा अनित्य हैं। परंतु जैन सिद्धान्तके अनुसार प्रत्येक पदार्थ नित्य और अनित्य है । अनेकान्तवादके कुछ अंशोंमें वैदिक दर्शनोंका मत सर्वथा मिलता है। मीमांसक लोग कारण और कार्यको सर्वथा भिन्न और अभिन्न मानते हैं । वास्तवमें मीमांसक ही नहीं सांख्य और पातञ्जल योग सिद्धान्तके अनुसार भी कार्य-कारण भिन्न और अभिन्न हैं । गुण और गुणी, सामान्य और विशेषका भी भेदाभेद है।
अद्वैतसिद्धिकी टीका - लघुचन्द्रिकामें श्रीब्रह्मानन्दजी जैन, सांख्य और पाताल मतको गुण और गुणी आदिमें भेदाभेदवादी मानते हैं। प्राचीन वौद्ध भी इस प्रकारके थे; जिनके अनुसार कारण और कार्यमें भेदाभेद वाद था। अभिधर्मकोशकी आचार्य स्थिरमतिने व्याख्या लिखी है, उसके अनुसार सर्वास्तिकवादी सत्कार्यवादको मानते थे । और सत्कार्यवाद भेदाभेद पर प्रतिष्ठित है।
एकान्तवाद और अनेकान्तवादमें चाहे कितना भी विरोध हो; परन्तु इस विषयमें कोई मतभेद नहीं होना चाहिये कि 'अनेकान्तवाद एक आस्तिकवाद है।' कुछ प्राचीन लोगोंने नास्तिक कहकर जैन सिद्धान्तकी उपेक्षा की है । परन्तु यह उचित नहीं। जिन लोगोंने जैन मतको नास्तिक कहा है उसके दो कारण मुख्य रूपमें थे। .. पहला कारण यह था कि जैनाचार्य जगत्के कर्ता स्वरूप परमात्माकी सत्ता नहीं मानते । इस कारण जैन मत उनकी दृष्टिमें नास्तिक मत है । परन्तु जगत्कर्ताकी अस्वीकृति के कारण नास्तिक कहना अनुचित है।
पूर्वमीमांसा के आचार्य प्रभाकर, कुमारिल भट्ट, मण्डनमिश्र वैदिक और आस्तिक हैं । इसमें किसीका मतभेद नहीं हो सकता । इन तीनों आचार्योने क्रमसे बृहती श्लोकवार्तिक और विधिविवेकमें जगत् कर्ता ईश्वरका निषेध किया है । इनके अनुसार वेदमें जगत् कर्ताका प्रतिपादन नहीं है। जगत् कर्ताको न मानने पर भी पूर्वमीमांसा के वे आचार्य वैदिक और आस्तिक माने जाते हैं तो जैनमत भी उनके समान आस्तिक माना जाना चाहिये। . . . . .. दूसरी वात-जिसके कारण जैनोंको नास्तिक कहा जाता है-वह है "वैदिक यज्ञोका विरोध । : परन्तु वैदिक यज्ञोंका विरोध कई सांख्याचार्य भी करते हैं। फिर भी वे नास्तिक नहीं