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५चकमे केवल महावीरकी स्तुति है। स्वयम्भूस्तोत्रमे कुल १४३ पद्य है, जबकि प्रस्तुत पत्तीसियोंके कुल पछ १६० होते है। इतने अन्तरके अतिरिक्त दोनोमें अनेक प्रकारका अर्थसूचक साम्य भी है। इस साम्यमे छन्द, उपक्रम, उपसहार, केई खास शब्द, शैली तथा वस्तुकल्पना एवं उपादान समानता मुख्य रूपसे तुलना करनेवालेका ध्यान आकृष्ट करती है।'
स्वयम्भूस्तोत्रमे जसे अनेक छन्दोकी ५सदगी है, वैसे ही बत्तीसी-पचकमे भी है। स्वयम्भूस्तोत्रका प्रारम्भ स्वयम्भू शब्दसे होता है और समाप्ति ( ३लो. १०२) श्लेषमे कताक समन्तभद्र नामके साथ होता है । बत्तीसी-पचकर्म भी ऐसा ही है। उसमे भी पहला स्वयम्भू शब्द है और अन्तमे श्लेषमे ( बत्तीसी ५, २लो० ३२) कर्ताको सिद्धसेन नाम है। सिद्धसेन और समन्तभद्रसे पहले कनिकके समयमे होनेवाले वौद्ध स्तुतिकार मातृपेट भी बुद्धको 'स्वयम्भू' पदसे
વસ્તી
१. समान अर्थवाले पद्य
स्वयम्भूस्तोत्र __ जिनो जितक्षुल्लकवादिशासन: ५ प्रपंचितल्लिकातशासनः १.९ समन्तभद्रम् ।
१४३ समन्तसक्षगुणम् नैतत समालोढपदं त्वदन्यः ४१ पररनालोपयस्त्वयोदितः १.१३ जिने त्वयि सुप्रसन्नमनस्थिता वयम् १२९ स्वयि प्रसादादयसोत्सवाः स्थिताः।
त्वदाश्रयकृतादरास्तु क्यमध वीर स्थिताः
३.२ मयापि भक्त्या परिणूयसेऽद्य ३५ न केवलं श्राद्धतयंव नूयसे १.४ पासिंहनादः
३८ सुगदसिंहनादः कृतः ३.२६ सिंहनाद शब्द बौद्ध पिटकके मज्झिमनिकायके सिंहनादसुतमें बहुत पहलेसे प्रसिद्ध है और अश्वघोषने भी इसे लिया है नाद सिंहनाद (सर्ग ५, २लो०४८) । गीता ( १.१२ ) में भी यह २०५ है ।
पद्योमें आये हुए समान शब्द स्वयम्भू स्वयम्भूस्तोत्र १ बत्तीसी वसुधावपू .
३ ॥ इति निरुपम , १०२
५.३२ २. अध्यर्धशतक ८ । विशेषके लिए देखो दर्शन अने चिन्तन' ( गुजराती) पृ० ६५४। . . . .
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