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आदिके' अर्थविचारसे सम्बद्ध अनेक मोमासक पक्षोको रखकर उसपर विद्यानन्दीने अष्टसहस्रीमे की है वैसी नियोगकी विस्तृत चर्चा की है । पैसठवी गाधाकी व्याख्यामे दिगम्बरोके साथ मतभेदवाले निर्ग्रन्थ द्वारा वस्त्र-पात्र धारण करनेके, स्त्री-मुक्ति के और प्रतिमाको वस्त्रालकार धारण करानेके बाद बहुत विस्तारसे दाखिल किये है । उनहत्तरखी गाथाको व्याख्यामे पुनः सप्तभगी आदिकी स्पष्ट चर्चा करके अनेकान्तका स्वरूप दिखलाया है | अन्तमे निग्रहस्यानके स्वरूपकी बोद्ध और न्यायवादियो के साथ दीर्घ चर्चा करके टीका पूर्ण की है ।
मेरे
प्रस्तुत टीकामे आये हुए वाद बहुधा तत्त्वसग्रह, न्यायकुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तण्ड, सिद्धिविनिश्चय आदि ग्रन्थोमे है, परन्तु उन ग्रन्थोकी अपेक्षा प्रस्तुत टीकाकी विशेषता भाषा, शैली, ग्रन्थ एवं ग्रन्यकारोके नाम तथा उद्धरणके વિષયમે इस प्रकार अनेक प्रकारकी है ।
મૂળ તીનો લાખ્ખોને વિષયોા તથા દીામેં િિલત શાસ્ત્રાર્ષીય વિષયોળો यह अतिसक्षिप्त चित्रण है । इस ग्रन्यके विषयोका क्रमिक और अधिक ख्याल प्राप्त करने की इच्छावालेको यदि प्रत्यका अध्ययन न करना हो, तो भी अनुक्रमणिका देखने से बहुत कुछ ख्याल आ सकेगा ।
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बत्तोसियों का परिचय'
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आचार्य सिद्धसेनकी उपलब्ध बत्तीसियाँ इक्कीस और उनमे न्यायावतारका समावेश किया जाय तो वाईस है । इन वत्तीसियो के अवलोकनका सामान्य और सक्षिप्त सार यहाँ दिया जाता है। इसके तीन भाग है :
o પ્રન્યર્તા સિદ્ધસેન યુાળી કૃતિષધ પરિસ્થિતિ† I
२. सिद्धसेनकी योग्यता और स्थिति ।
३. बत्तीसियोका परिचय |
१. सिद्धसेन के जीवनको जानकारीका सच्चा आधार तो उनके अन्य ही समझे जा सकते है । उनके ग्रन्थोंमें बत्तोसियोका स्थान सम्मतिको अपेक्षा भी अनेक दृष्टियोंसे महत्त्वका है । अतः उनका अवलोकन यहाँ प्रस्तुत ही नहीं, अत्यन्त आवश्यक भी है । इसी दृष्टिसे यहाँ उनके विषयमें थोड़ा प्रयत्न किया है ।