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________________ ३७६ - रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला प्रशस्ति । स्थापितोऽयं धर्मचन्द्रो' लक्ष्मीणो ज्ञानदक्षो विबुधमुनिजनानन्दकारी स्वभावात् ॥ १८॥ पद्मकीर्तिमुनेः शिष्यो गुणरत्नमहोनिधिः । ब्रह्मचारी हरीराजः शीलव्रतविभूषितः ॥ १९॥ इति प्रशस्तिः । जीवाकारणवन्धवे । सिंधवे गुणरत्नानां नमस्त्रिभुवनेन्दवे ॥ ७ ॥ त्रिभुवनचन्द्रं चन्द्रं नौमि महासंयमोत्तमशिरसा। यस्योदयेन जगतां स्वान्ततमोराशिकृन्तनं कुरुते ॥ ८॥ इति प्रशस्तिः । भाषाकारकी प्रशस्ति । दोहा-मूलग्रंथकरता भए, कुंदकुंद मतिमान । अमृतचंद्र टीका करी, देवभाष परवान ॥ १ ॥ जैसौ करता मूलकी, तैसौ टीकाकार । तातै अतिसुंदर सरस, बरतै प्रवचनसार ॥ २ ॥ सकलतत्त्वपरकासिनी, तत्त्वदीपिका नाम । टीका सरसुतिदेविकी, यह टीका अभिराम ॥३॥ चौपाई-बालबोध यह कीनी जैसै । सो तुम सुनहु कहूं मैं तैसै ॥ नगर आगरेमैं हितकारी । कॅवरपाल ग्याता अविकारी ॥४॥ तिन विचार जियमैं इह कीनी । जो भाषा इह होइ नवीनी ॥ अल्पबुद्धि भी अरथ बखानै । अगम अगोचर पद पहिचान ॥ ५॥ यह विचार मनमैं तिन राखी । पांडे हेमराजसौं भाखी ॥ आगै राजमल्ल. कीनी। समयसारभाषा रसलीनी ॥ ६ ॥ अब जो प्रवचनकी द्वै भाषा । तौ जिनधर्म वधै बहु-साखा ॥ ताते करहु, बिलंब न कीजै । परमभावना अंगफल लीजै ॥ ७ ॥ दोहा-अवनीपति बंदहिं चरण, सुयण-कमल विहसंत । साहजिहांदिनकर-उदै, अरिगण-तिमिर नसंत॥८॥ सोरंठा-निज सुबोध अनुसार, ऐसे हित उपदेशसौं । रची भाष अविकार, जयवंती प्रगटहु सदा ॥ ९ ॥ हेमराज हिय आनि, भविकजीवके हित भणी । जिनवर-आण-प्रमानि, भाषा प्रवचनकी करी॥१०॥ दोहा-सत्रहसै नव उत्तरै, माघ मास सित पाख । पंचमि आदितवारको, पूरन कीनी भाख ॥११॥ पटूसहस्र-सत तीन है, संख्या ग्रंथप्रमान । विदुष विवेकविचारिकार, सुणिज्यो पुरुष प्रधान ॥१२॥ इस प्रकार प्रशस्ति पूर्ण हुई। Dr.tkateatil Watatoritetet e trete treteteta tataterte समाप्तोऽयं ग्रन्थः
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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