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- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला - [अ० २, गा० २७ .. त्वनानात्वाभ्याम् । यदा खलु भङ्गोत्पादयोरेकत्वं तदा पूर्वपक्षः, यदा तु नानात्वं तदोत्तरः। तथाहि-यथा य एव घटस्तदेव कुण्डमित्युक्ते घटकुण्डस्वरूपयोरेकत्वासंभवात्तदुभयाधारभूता मृत्तिका संभवति, तथा य एव संभवः स एव विलय इत्युक्ते संभवविलयस्वरूपयोरेकत्वासंभवात्तदुभयाधारभूतं ध्रौव्यं संभवति । ततो देवादिपर्याये संभवति मनुष्यादिपर्याये विलीयमाने च य एव संभवः स एव विलय इति कृत्वा तदुभयाधारभूतं धौव्यवजीवद्रव्यं संभाव्यत एव । ततः सर्वदा द्रव्यत्वेन जीवष्टकोत्कीर्णोऽवतिष्ठते । अपि च यथाऽन्यो घटोऽन्यत्कुण्डमित्युक्ते तदुभयाधारभूताया मृत्तिकाया अन्यत्वासंभवात् घटकुण्डस्वरूपे संभवतः, तथान्यः संभवोऽन्यो विलय इत्युक्ते तदुभयाधारभूतस्य ध्रौव्यस्यान्यत्वासंभवात्संभवविलयस्वरूपे संभवतः । ततो देवादिपर्यायैः संभवति देवादिपर्यायैनयेन यो हि भवस्स एव विलयो यतः कारणात् । तथाहि-मुक्तात्मनां य एव सकलविमलकेवलज्ञानादिरूपेण मोक्षपर्यायेण भव उत्पादः स एव निश्चयरत्नत्रयात्मकनिश्चयमोक्षमार्गपर्यायेण विलयो विनाशस्तौ च मोक्षपर्यायमोक्षमार्गपर्यायौ कार्यकारणरूपेण भिन्नौ, तदुभयाधारभूतं यत्परमात्मद्रव्यं तदेव मृत्पिण्डघटाधारभूतमृत्तिकाद्रव्यवत् मनुष्यपर्यायदेवपर्यायाधारभूतसंसारिजीवद्रव्यवद्वा । क्षणभङ्गसमुद्भवे हेतुः कथ्यते। संभवविलय त्ति ते णाणा संभवविलयौ द्वाविति तौ नाना भिन्नौ यतः कारणात्ततः पर्यायार्थिकनयेन भङ्गोत्पादौ । तथाहि-य एव पूर्वोक्त. लिये हुए हैं । भावार्थ-इस विनाशीक संसारमें जो द्रव्यदृष्टिसे देखा जाय, तो न तो कोई वस्तु उत्पन्न होती है, और न विनाशको प्राप्त होती है, इस कारण द्रव्यार्थिकनयसे उत्पाद और व्यय इन दोनों अवस्थाओंमें द्रव्य एक नित्य ही है, पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षा उत्पाद, व्यय जुदा जुदा हैं। इस तरह उत्पाद और व्ययमें एकता और अनेकता ये दो भेद होते हैं । जो द्रव्यत्वकर देखा जाय, तो एकता है, और पर्यायार्थिकसे अनेकता देखनेमें आती है। यही दृष्टांतसे दिखाते हैं-जैसे जो घड़ा है, वही कूड़ा है, ऐसा कहनेसे घड़े और कूड़ेमें एकता नहीं होसकती, इस कारण उन दो स्वरूपोंका आधार मिट्टीकी जो अपेक्षा ली जावे, तो एकता हो सकती है, उसी प्रकार उत्पाद, व्ययमें भी द्रव्यपनेसे दोनोंका आधार ध्रौव्य द्रव्य आता है। इसलिये जीवके देवादि पर्यायके उत्पाद होनेपर और मनुष्यादि पर्यायके विनाश होनेपर जो उत्पन्न होता है, वही विनाश पाता है, इन दोनों अवस्थाओंका आधार ध्रौव्य जीवद्रव्य 'ही सिद्ध होता है । इस कारण जीव द्रव्य हमेशा द्रव्यपनेसे टंकोत्कीर्ण रहता है। इस तरह सब अवस्थाओंमें एकता सिद्ध हुई। अब भेद दिखाते हैं जैसे घड़ा अन्य है, और कूड़ा अन्य ही है, ऐसा कहनेपर जो उन दोनोंका आधार मृत्तिकाकी अपेक्षा लें, तो भेद हो नहीं सकता, इसलिये यहाँ घट-कुंड पर्यायोंके भेदसे ही भेद हो सकता है, उसी प्रकार अन्य ही उत्पन्न होता है, और दूसरा ही नाशको पाता है, ऐसा कहनेपर यदि इन दोनोंका आधार