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- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला - [अ० २, गा० १९-' पर्यायनिष्पादिकास्तास्ता व्यतिरेकव्यक्तयो यौगपद्यप्रवृत्तिमासाद्यान्वयशक्तित्वमापन्नाः पर्यायान् द्रवीकुर्युः, तथाङ्गदादिपर्यायनिष्पादिकाभिस्ताभिस्ताभिर्व्यतिरेकव्यक्तिभियौंगपद्यप्रवृत्तिमासाद्यान्वयशक्तित्वमापन्नाभिरङ्गदादिपर्यायानपि हेमीक्रियेरन् । द्रव्याभिधेयतायामपि सदुत्पत्तौ द्रव्यनिष्पादिका अन्वयशक्तयः क्रमप्रवृत्तिमासाद्य तत्तव्यतिरेकव्यक्तित्वमापन्ना द्रव्यं पर्यायीकुर्युः । तथा हेमनिष्पादिकाभिरन्वयशक्तिभिः क्रमवृत्तिमासाद्य तत्तद्व्यतिरेकमापन्नाभिहेमाङ्गदादिपर्यायमात्री क्रियेत । ततो द्रव्यार्थादेशात्सदुत्पादः, पर्यायार्थादेशादसत् इत्यनवद्यम् ॥ १९ ॥ तथा यदा 'द्रव्यार्थिकनयविवक्षा क्रियते य एव पूर्व गृहस्थावस्थायामेवमेवं गृहव्यापारं कृतवान् पश्चाजिनदीक्षां गृहीत्वा स एवेदानी रामादिकेवलीपुरुषो निश्चयरतत्रयात्मकपरमात्मध्यानेनानन्तसुखामृततृप्तो जातः, न चान्य इति । तदा सद्भावनिबद्ध एवोत्पादः । कस्मादिति चेत् । पुरुषत्वेनाविनष्टत्वात् । यदा तु पर्यायनयविवक्षा क्रियते । पूर्व सरागावस्थायाः सकाशादन्योऽयं भरतसगररामपाण्डवादिकेवलिपुरुषाणां संबन्धी निरुपमरागपरमात्मपर्यायः स एव न भवति । तदा पुनरसद्भावनिबद्ध एवोत्पादः । कस्मादिति चेत् । पूर्वपर्यायादन्यत्वादिति । यथेदं जीवद्रव्ये सदुत्पादासदुत्पादव्याख्यानं कृतं तथा सर्वद्रव्येषु यथासंभवं ज्ञातव्यहै। इसी प्रकार द्रव्य अपने अविनाशी गुणोंसे युक्त रहकर अनेक पर्याय धारण करता है। सो उसे यदि द्रव्यार्थिकनयकी विवक्षासे कहते हैं, तो जितने पर्याय हैं, उन सब. पर्यायोंमें वही द्रव्य उत्पन्न होता है, जो पहले था, अन्य नहीं । ये सत्उत्पाद है । और यदि पर्यायार्थिकनयकी अपेक्षासे कहते हैं, तो जितने पर्याय उत्पन्न होते हैं, वे सब अन्य अन्य ही हैं। पहले जो थे, वे नहीं हैं-यह असत् उत्पाद है । और जैसे पर्यायार्थिककी विवक्षामें जो असत्रूप कंकण कुंडलादि पर्याय उत्पन्न होते हैं, उनके उत्पन्न करनेवाली जो सुवर्णमें शक्ति है, वह कंकण कुंडलादि पर्यायोंको सुवर्ण द्रव्य करती है। सोनाकी पर्याय भी सोना ही है, क्योंकि पर्यायसे द्रव्य अभिन्न है । इसी प्रकार पर्याय विवक्षामें द्रव्यके जो असद्रूप, पर्याय हैं, उनकी उत्पन्न करनेवाली शक्ति जो द्रव्यमें है, वह पर्यायको द्रव्य करती है। जिस द्रव्यके जो पर्याय हैं, वे उसी द्रव्यरूप हैं, क्योंकि पर्यायसे द्रव्य अभिन्न है । इसलिये पर्याय और द्रव्य दो वस्तु नहीं हैं, जो पर्याय है, वही द्रव्य है । और द्रव्यार्थिककी विवक्षासे जैसे सोना अपनी पीतंतादि शक्तियोंसें कंकण कुंडलादि पर्यायोंमें उत्पन्न होता है, सो सोना ही कंकण कुंडलादि पर्यायमात्र होता है । अर्थात् जो सोना है, वहीं कंकण कुंडलादि पर्याय हैं, उसी प्रकार द्रव्य अपनी शक्तियोंसे अपने पर्यायों में क्रमसे उत्पन्न होता है । जब जो पर्याय धारण करता है, तब उसी पर्यायमात्र होता है, अर्थात् जो द्रव्य है, वही पर्याय है। इसलिये सिद्ध हुआ, कि असत्उत्पादमें जो पर्याय हैं, वे द्रव्य ही हैं,