SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३९ ९.] - प्रवचनसारः - उत्पादस्थितिभङ्गा विद्यन्ते पर्यायेषु पर्यायाः । द्रव्यं हि सन्ति नियतं तस्माद्रव्यं भवति सर्वम् ॥ ९॥ उत्पादव्ययध्रौव्याणि हि पर्यायानालम्बन्ते, ते पुनः पर्याया द्रव्यमालम्बन्ते । ततः समस्तमप्येतदेकमेव द्रव्यं न पुनद्रव्यान्तरम् । द्रव्यं हि तावत्पर्यायैरालम्ब्यते । समुदायिनः समुदायात्मकत्वात् पादपवत् । यथा हि समुदायी पादपः स्कन्धमूलशाखासमुदायात्मकः स्कन्धमूलशाखाभिरालम्बित एव प्रतिभाति, तथा समुदायि द्रव्यं पर्यायसमुदायात्मकं पर्यायैरालम्बितमेव प्रतिभाति । पर्यायास्तूत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्ते उत्पादव्ययध्रौव्याणामंशधर्मत्वात् बीजाङ्कुरपादपवत् । यथा किलांशिनः पादपस्य बीजाकुरपादपत्वलक्षणास्त्रयोंऽशा भङ्गोत्पादध्रौव्यलक्षणैरात्मधमैरालम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति, तथांशिनो द्रव्यस्योच्छिद्यमानोत्पद्यमानावतिष्ठमानभावलक्षणास्त्रयोंऽशा भङ्गोत्पादध्रौव्यलक्षणैरात्मधर्मैरालम्बिताः सममेव प्रतिभान्ति । यदि पुनर्भङ्गोत्पादध्रौव्याणि द्रव्यस्यैवेष्यन्ते लक्षणास्त्रयो भङ्गाः कर्तारः विजंते 'विद्यन्ते तिष्ठन्ति । केषु । पजएसु सम्यक्त्वपूर्वकनिर्विकारखसंवेदनज्ञानपर्याये तावदुत्पादस्तिष्ठति खसंवेदनज्ञानपर्यायरूपेण भङ्गस्तदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपर्यायेण ध्रौव्यं चेत्युक्तलक्षणखकीयस्वकीयपर्यायेषु पज्जाया दवं हि संति ते चोक्तलक्षणज्ञानाज्ज्ञानतदुभयाधारात्मद्रव्यत्वावस्थारूपपोया हि स्फुटं द्रव्यं सन्ति णियदं निश्चितं प्रदेशाभेदेऽपि खकीयखकीयसंज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेन तम्हा दबं हवदि सवं यतो निश्चयाधाराधेयभावेन तिष्ठन्त्युत्पादादयस्तस्मात्कारणादुत्पादादित्रय खसंवेदनज्ञानादिपर्यायकरके वे [ पर्यायाः ] पर्याय [ द्रव्ये ] द्रव्यमें [ सन्ति ] रहते हैं। [तस्मात् ] इस कारणसे [ नियतं ] यह निश्चय है, कि [ सर्व ] उत्पादादि सव [ द्रव्यं] द्रव्य ही [भवति ] हैं, जुदे नहीं हैं। भावार्थ-उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यभाव पर्यायके आश्रित हैं और वे पर्याय द्रव्यके आधार हैं, पृथक् नहीं हैं, क्योंकि द्रव्य पर्यायात्मक है । जैसे वृक्ष स्कंध (पीड ), शाखा और मूलादिरूप है, परन्तु ये स्कंध-मूल-शाखादि वृक्षसे जुदा पदार्थ नहीं हैं, इसी प्रकार उत्पादादिकसे द्रव्य पृथक् नहीं है, एक ही है। द्रव्य अंशी है, और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य अंश हैं । जैसे वृक्ष अंशी है, बीज अंकुर वृक्षत्व अंश हैं । ये तीनों अंश उत्पाद-व्यय और ध्रुवपनेको लिये हुए हैं, वीजका नाश अंकुरका उत्पाद और वृक्षत्वका ध्रुवपना है । इसी प्रकार अंशी द्रव्यके उत्पद्यमान विनाशीक और स्थिरतारूप-ये तीन पर्यायरूप अंश हैं, सो उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वसे संयुक्त हैं । उत्पाद-व्यय-ध्रुवभाव पर्यायोंमें होते हैं। जो द्रव्यमें होवें, तो सबका ही नाश हो जावे। इसीको स्पष्ट रीतिसे दिखाते हैं जो द्रव्यका नाश होवे, तो सब शून्य हो जावे, जो द्रव्यका उत्पाद होवे, तो समय समयमें एक एक द्रव्यके उत्पन्न होनेसे अनन्त द्रव्य होजावें, और जो द्रव्य ध्रुव होवे, तो पर्यायका नाश होवे, और पर्यायके नाशसे
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy