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- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला - [अ० १, गा० ७२प्रत्युत तेषां स्वाभाविकं दुःखमेवावलोक्यते । यतस्ते पञ्चेन्द्रियात्मकशरीरपिशाचपीडया परवशा भृगुप्रपातस्थानीयान्मनोज्ञविषयानभिपतन्ति ॥ ७१ ॥
अथैवमिन्द्रियसुखस्य दुःखतायां युक्त्यावतारितायामिन्द्रियसुखसाधनीभूतपुण्यनिर्वर्तकशुभोपयोगस्य दुःखसाधनीभूतपापनिर्वर्तकाशुभोपयोगविशेषादविशेषत्वमवतारयति
णरणारयतिरियसुरा भजति जदि देहसंभवं दुक्खं । किह सो सुहो व असुहो उवओगो हवदि जीवाणं ॥७२॥
नरनारकतिर्यकसुरा भजन्ति यदि देहसंभवं दुःखम् ।
कथं स शुभो वाऽशुभ उपयोगो भवति जीवानाम् ॥ ७२ ॥ माने सति विषयसुखस्थानीयमधुबिन्दुसुखादेन यथा सुखं मन्यते, तथा संसारसुखम् । पूर्वोक्तमोक्षसुखं तु तद्विपरीतमिति तात्पर्यम् ॥ ७१ ॥ अथ पूर्वोक्तप्रकारेण शुभोपयोगसाध्यस्येन्द्रियसुखस्य निश्चयेन दुःखत्वं ज्ञात्वा तत्साधकशुभोपयोगस्याप्यशुभोपयोगेन सह समानत्वं व्यवस्थापयति-णरणारयतिरियसुरा भजति जदि देहसंभवं दुक्खं सहजातीन्द्रियामूर्तसदानन्दैकलक्षणं वास्तवसुखमेव सुखमलभमानाः सन्तो नरनारकतिर्यक्सुरा यदि चेदविशेषेण पूर्वोक्तपरमार्थसुखाद्विलक्षणं पञ्चेन्द्रियात्मकशरीरोत्पन्नं निश्चयनयेन दुःखमेव भजन्ते सेवन्ते किह सो सुहो व असुहो उवओगो हबदि जीवाणं व्यवहारेण विशेषेऽपि निश्चयेन सः प्रसिद्धः शुद्धोपयोगाद्विलक्षणः शुभाशुभोपयोगः कथं भिन्नत्वं लभते, न कथमपीति
हैं, परंतु वे यथार्थ आत्मीक-सुख नहीं हैं, स्वाभाविक दुःख ही हैं, क्योंकि जब पंचेन्द्रियरूप पिशाच उनके शरीर में पीड़ा उत्पन्न करता है, तब ही वे देव मनोज्ञ विषयोंमें गिर पड़ते हैं । अर्थात् जिस प्रकार कोई पुरुष किसी वस्तु विशेषसे पीड़ित होकर पर्वतसे पड़ कर मरता है, इसी प्रकार इंद्रियजनित दुःखोंसे पीड़ित होकर उनके विषयोंमें यह आत्मा रमण ( मौज ) करता है । इसलिये इन्द्रियजनित सुख दुःखरूप ही हैं । अज्ञानबुद्धिसे सुखरूप मालूम पड़ते हैं, एक दुःखके ही सुख और दुःख ये दोनों भेद हैं ॥ ७१ ॥ आगे इंद्रिय-सुखका साधक पुण्यका हेतु शुभोपयोग और दुःखका साधन पापका कारण अशुभोपयोग इन दोनोंमें समानपना दिखाते हैं-[ यदि] जो. [ नरनारकतिर्यक्सुराः] मनुष्य, नारकी, तिर्यंच (पशु) तथा देव, ये चारों गतिके जीव [देहसंभवं दुःखं ] शरीरसे उत्पन्न हुई पीडाको [भजन्ति ] भोगते हैं, [तदा] तो [ जीवानां ] जीवोंके [ स उपयोगः ] वह चैतन्यरूप परिणाम [शुभः ] अच्छा [वा] अथवा [ अशुभः] बुरा [कथं भवति ] कैसे हो • सकता है ? । भावार्थ- शुभापयोगका फल देवताओंकी संपदा है, और अशुभोपयोगका