________________
४८
- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला- [अ० १, गा० ३६तस्मात् ज्ञानं जीवो ज्ञेयं द्रव्यं त्रिधा समाख्यातम् ।
द्रव्यमिति पुनरात्मा परश्च परिणामसंबद्धः ॥ ३६ ॥ यतः परिच्छेदरूपेण स्वयं विपरिणम्य स्वतन्त्र एव परिच्छिनत्ति ततो जीव एव ज्ञानमन्यद्रव्याणां तथा परिणन्तुं परिच्छेत्तुं चाशक्तेः । ज्ञेयं तु वृत्तवर्तमानवर्तिव्यमाणविचित्रपर्यायपरम्पराप्रकारेण विधाकालकोटिस्पर्शित्वादनाद्यनन्तं द्रव्यं, तत्तु ज्ञेयतामापद्यमानं द्वेधात्मपरविकल्पात् । इष्यते हि स्वपरपरिच्छेदकत्वावबोधस्य बोध्यस्यैवंविधं द्वैविध्यम् । ननु स्वात्मनि क्रियाविरोधात् कथं नामात्मपरिच्छेदकत्वम् । का हि नाम क्रिया कीदृशश्च विरोधः । क्रिया ह्यत्र विरोधिनी समुत्पत्तिरूपा वा ज्ञप्तिरूपा वा । उत्पत्तिरूपा हि तावन्नैकं स्वस्मात्प्रजायत इत्यागमाद्विरुद्धैव । ज्ञप्तिरूपायास्तु प्रकाशनक्रिययैव प्रत्यवरूपेण ज्ञानं परिणमति तथैव पदार्थान् परिच्छिनत्ति, इति भणितं पूर्वसूत्रे । तस्मादात्मैव ज्ञानं णेयं दवं तस्य ज्ञानरूपस्यात्मनो ज्ञेयं भवति । किम् । द्रव्यम् । तिहा समक्खादं तच्च द्रव्यं कालत्रयपर्यायपरिणतिरूपेण द्रव्यगुणपर्यायरूपेण वा तथैवोत्पादव्ययध्रौव्यरूपेण च त्रिधा समाख्यातम् । दवं ति पुणो आदा परं च तच्च ज्ञेयभूतं द्रव्यमात्मा भवति । परं च । कस्मात् । यतो ज्ञानं खं जानाति परं चेति प्रदीपवत् । तच्च स्वपरद्रव्यं कथंहै," इन दोनोंका भेद कहते हैं;-[तस्मात् ] इसी कारणसे [जीवः] आत्मा [ज्ञानं] ज्ञानस्वरूप है, और [विधा समाख्यातं] अतीत, अनागत, वर्तमान पर्यायके भेदसे अथवा उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य भेदसे अथवा द्रव्य, गुण, पर्यायसे तीन प्रकार कहलानेवाला [ द्रव्यं ] द्रव्य है, [ज्ञेयं] वह ज्ञेय है। [ पुनः] फिर [आत्मा] जीव पदार्थ [च] और [परं] अन्य अचेतन पाँच पदार्थ [ परिणामसंबद्धं] परिणमनसे बँधे हैं, इसलिये द्रव्यमिति] द्रव्य ऐसे पदको धारण करते हैं। भावार्थपहलेकी गाथामें कहा है, कि यह आत्मा ज्ञानभावसे आप ही परिणमन करके परकी सहा.. यता विना स्वाधीन जानता है, इसलिये आत्मा ही ज्ञान है। अन्य (दूसरा) द्रव्य ज्ञान भावपरिणमनके जाननेमें असमर्थ है। इसलिये अतीतादि भेदसे, उत्पादादिकसे, द्रव्यगुणपर्यायके भेदसे, तीन प्रकार हुआ द्रव्य ज्ञेय है, अर्थात् आत्माके जानने योग्य है।
और आत्मा दीपककी तरह आप तथा पर दोनोंका प्रकाशक (ज्ञायक) होनेसे ज्ञेय भी है, ज्ञान भी है, अर्थात् दोनों स्वरूप है। इससे यह सारांश निकला, कि ज्ञेय पदार्थ स्वज्ञेय और परज्ञेय (दूसरेसे जानने योग्य ) के भेदसे दो प्रकार हैं, उनमें पाँच द्रव्य ज्ञेय ही हैं, इस कारण परज्ञेय हैं, और आत्मद्रव्य ज्ञेय-ज्ञान दोनों रूप है, इस कारण स्वज्ञेय है। यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि आत्मा अपनेको जानता है, यह बात असंभव है । जैसे कि, नट-कलामें अत्यंत चतुर भी नट आप अपने ही कंधेपर नहीं चढ़ सकता, उसी प्रकार अन्य पदार्थोके जानने में दक्ष आत्मा आपको नहीं जान सकता, तो इसका समाधान यह है