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-रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला -:
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विषय , पृ. गा.
विषय 'शुभोपयोगीके ही पूर्वोक्त प्रवृत्तियाँ ... ३४२१४९ जो मुनि अधिक गुणवालेसे विनय चाहता
। संयम-विरोधी प्रवृत्तिका निषेध... ... ३४३।५०
है, वह अनंतसंसारी है ... ... ३५७१६६ :
| अपनेसे गुणहीनकी विनय सेवा करनेसे भी परोपकार प्रवृत्तिके पात्र... ... ... ३४४१५१
चारित्रका नाश होता है ... ... ३५८१६७, . प्रवृत्तिके कालका नियम... ... ... ३४५।५२
कुसंगतिका निषेध वैयावृत्त्यके कारण अज्ञानी लोगोंसे भी वो
.... ... ... ३५९।६८
लौकिकजनका लक्षण ... ... ... ३६०।६९ लना पड़ता है ... ... ... ३४६।५३
. | सत्संगति करने योग्य है ... ... ३६११७० शुभोपयोगके गौण और मुख्य भेद ... ३४७।५४
संसारतत्त्वका कथन ... ... ... ३६२।७१ - शुभोपयोगके कारण विपरीत होनेसे फलमें
मोक्षतत्त्वका कथन . ... ... ... ३६३।७२ विपरीतपना.... ... ... ... ३४८१५५ | मोक्षतत्त्वके साधनतत्त्वका कथन ... ३६४७३ उत्तम फलका . कारण उत्तम पात्र है, यह मोक्षतत्त्वका साधनतत्त्व सब मनोरथोंका • कथन ... ... ... ... ३५११५९ | स्थान है ... ... ... ... ३६५/७४
उत्तम पात्रोंकी सेवा सामान्य विशेषपनेसे | शिष्यजनोंको शास्त्रका फल दिखलाकर __ दो तरहकी है ... ... ... ३५३।६१ शास्त्रकी समाप्ति ... ... ... ३६६७५.. श्रमणाभासोंकी सेवाका निषेध ... ... ३५४।६३ | आत्माकी पहचानके लिये ४७ नयोंका श्रमणाभासका लक्षण ... ... ... ३५५।६४ कथन ..... ... ... ... ३६८० जो दूसरे मुनिको देखकर द्वेष करता है, | टीकाओंकी समाप्ति · .... ... ... ३७४।०
उसके चारित्रका नाश हो जाता है ...३५६।६५ | प्रशस्तियाँ ..... .....
- इति विषयानुक्रमणिका
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