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परिच्छेदः १६ संबध्यते तथाचात्रयत्पुरातनंरुत्पंश्लाघितंवर्त्तते तत्किमारा धकसम्यक्दृष्ट्यादिसत्कमुतान्यसत्कमिति ॥ ६ ॥ एतत्प्र प्रतिवच पाठ तथा जंबूद्वीपप्रज्ञप्तौ जीवानिगमे च जगतीवर्णनाधिकारे व्यंतरदेवदेवीनां यत्पुरापुरायाणं सुचिपाणमित्यादिनाप्राक्तन सुकृतप्रशंसनंतदाराधकसम्य कदृष्ट्यादिव्यतिरिक्तानामेवावसीयते ॥ ६॥ एम पूर्वोक्क प्रकारे मिथ्यादृष्टि देवोनो वर्णवाद बोलवो पण अवर्णवाद वर्जवो, ते मार्गानुसारि धर्मकार्य याश्रयिने वर्णवाद जांणवो पण मिथ्यादृष्टि तथा तेनुना धर्मकृत्य याश्रि न जांणवो, केमके वर्णवाद, श्लाघा, प्रशंसा, ए एकार्थ
तेथी मिथ्यादृष्टिनी प्रशंसामां तो ज्यागममां अतिचार प्रतिपादन करो तो मिथ्यादृष्टिना वर्णवादमां सुल्लन बोधिप क्यांथी थाय? माटे ते पूर्वोक्त पाठना अनिप्रायी मुख्यपणे समदृष्टि तथा मार्गानुसारि देवोना वर्णवाद नवे पण बीजाना न संजवे, इहां कोइ कहेशे के ए पाठथी चतुर्थस्तुतिकारणविना कहेवी सिद्ध थायडे केम के समदृष्टि देवोना वर्णवाद करे तो सुल्लनबोधि कर्म उपार्जन करे एवं कहयुं तेथी चतुर्थस्तुति पण समदृष्टि देवोना वर्णवादनीज बे तेने कहिए ए पाठथी चतुर्थस्तुति कारण विना सिद्ध थती नथी, कारण के चतुर्थस्तुति एकांते गुणवर्णवनीज नथी; पूर्वोक्त ग्रंथोमां स्वकृत्योमां