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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोझारः ६५१ खेत्तदेवयाए थुश्यतेपंचमंगलयं" ए गाथा कोई टीका चूर्णिमां डेज नही, तेथी कोइये प्रदेप करीने, पण नियूंक्तिकार कृत नथी, एवं यावश्यक दीपिकामां लखेडे. ते पाठ ॥ तथा वृत्तिचूादि दृष्टाक्काथादर्श गाथादृश्यते उन्नियटुंतिचरित्ते इत्यादि चारित्रशोधये द्वौ नद्योततकरौस्तः दर्शनझानयोरेकैक उद्योतकरः स्यात् श्रुतक्षेत्रदेवतयोः स्तुतेरंते पंचमंगलं नमस्कारो नएयः परं उत्तरार्थिः सिझते मया न झातोऽस्ति स्तुतिशब्दो देव्या उर्घट इव ॥ अर्थः ॥ वृत्ति चूादिकोमां तो में था गाथा दीठी नथी, पण कोईक पुस्तकमां लखेने के चारित्र शोधवा थर्थे बेलोग्गस्सनो कानस्सग्ग, दर्शन झानने अर्थे एके क लोगस्सनो कानस्सग्ग थाय, श्रुत देत्र देवीनी थु ना अंतमां नवकार कहेवो पण ए गाथाना अंतनाबे पद दे, तेनो अर्थ सिद्धांतमां अमे जाएयो नथी, केमके देवीनी थुइ कहेवी उर्घट .॥ एटले सिद्धांत युक्तिए संनवति नथी;इहां देव्यादिकोनी स्तुति उर्घट कही ते माटे चोयी थुइ पण पूजाउपचारादि कारणविना केमसंनवे? ते बुध्विंतोने विचारवं. ॥ तथा चतुर्थस्तुति निर्णय पृष्ट १६० मां आत्मारामजी आनंदविजयजीए प्रावश्यकसू त्रनुं नाम लखी पाठ लख्यो , ते पाठ आवश्यक सूत्रनो
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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