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________________ ६२२ परिजेदः १५ के श्रुतदेवी ते व्यंतरादिप्रकार सरस्वतीनामा देवी तेना कायोत्सर्ग प्रमुख ध्यानस्मरण करवाथी झानावी कमनो श्योपशम थयां ज्ञाननी प्राप्ति थाय, ते झानथी कोईक प्राणियोने मोद थाय, माटे व्यंतरादिप्रकार श्रुतदेवीना कायोत्सर्ग प्रमुख पण प्रतिक्रमणादिकमांकरवा युक्त , तेने कहिए के हे महानुनाव ! कथंचित्प्रकारे एम होय तोपण प्रतिक्रमणादि व्यवहार क्रियामां कारण विना ग्रहण न थाय, केमके श्री मलयगिरीजी याचार्या दि कतावश्यक वृहद्धृत्यादिकमां ब्राह्मी प्रमुख वनस्प तीना सेवनथी पण झानावर्णी कर्मनो क्षयोपशम कह्यो बे, तेथी पण ज्ञानप्राप्ति थाय ने अने ते ज्ञानथी पण कोईक प्राणीने मोद थायबे, तो तमारा कथनथी तो ब्राह्मीप्रमुख वनस्पतीना पण कायोत्सर्ग प्रमुख प्रतिक्रमणादिक्रियामां करवा सिह थया, ते प्रमाणे स्वगड तथा परगन्जमां कोइ पण करता नथी, तेथी व्यंतरादि प्रकार श्रुतदेवीना आराधनथी मोद थाय एवो जिनशासननो व्यवहार नथी,पण जिनवाणी रूप श्रुतदेवीना बाराधनथी मोद थाय एज जिनमतनो व्यवहार दे, ते माटे जो कोजिनवाणीरूप श्रुतदेवीनो कायोत्सर्ग तथा स्तुति निषेध करीने व्यंतरादिप्रकार श्रुतदेवीना कायोसर्ग प्रतिक्रमणप्रमुखमां स्थापन करे , ते जिनमतना
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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