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________________ ६२० परिच्छेदः १५ अर्थः ॥ नमस्कार हो सू० श्रुत जे द्वादशांगी रूप अरिहंतना प्रवचन तेने ते श्रुतना इष्ट देवताने नमः स्कार कीधां मंगलीकनो अर्थ होय, ते इहां श्रुतनो इष्ठ देवता अरिहंतने नमस्कार होवो, अने अरिहंत सि-क्ष्ने नमस्कार करेले ते नणी ते श्रुत अरिहंत तीर्थकरोने न मस्कार हो, अथवा गणधर देव सूत्रना गुंथणहार तेहने नमस्कार हो ॥ इत्यादि बीजा पण सूत्रोमां जिनवाणी रूप श्रुतदेवताने श्री गणधरादिके नमस्कार कस्योडे,पण देवतारूपे नमस्कार करयो नथी तथा श्री आवश्यक चूर्णीमां श्रुतदेवता एटने जिनवाणीनी अाशातना वरजी डे. से पाठः ॥ सुयदेवयाए आसायणाएत्ति ॥ सुयदेवया जीए सुयमहिठियंतीएयासायणा नाबसा अकिंचित्क रीवाएवमादि॥ अर्थः ॥ श्रुतदेवी जणे श्रुत अधिष्ठित बेतेनी प्राशातना एम जे श्रुतदेवी नथी, तो शुं करनारी, एम कहे तो आशातना; तथा च श्री आवश्यक वृहद्वृत्तौ ॥ तत्पातः ॥ श्रुतदेवताया याशातना क्रिया प्राग्वत् पाशातना तु श्रुतदेवता सा नविद्यते किंचित्करी वा न ह्यनधिष्टितो मौनीः खल्वागमः अतोसावस्ति न चाकिंचित्करी तामाखंब्य प्रशस्तमनसः कर्मक्ष्यदर्शनात्.
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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