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________________ ԱԵՍ परिच्छेदः १४ ३ चरिम के बाहार लेने पती चैत्यवंदन करीने पाणी पीवुं ४ पडिक्कमण के संध्याए पडिक्कमणुं करतां तथा नमोस्तुव ईमानाय एह बिहुं एक पडिक्कमणानुं चैत्यवंदन गण ५ सूया के० पोरसी रात्रिनी वेलाए चौकसाय जे कहे ते बहु चैत्यवंदन पडिबोहि के० पाबली रात्रे जागी कुस्मा स्मणो का स्सग्ग करीने चैत्यवंदन जग चिंतामणादिकनुं कहेतुं ए सातमुं 9 एचैत्यवंदन जइयो के ० यतिने साधुने अहोरात्रमां करवुं जे सम्यग्दृष्टि जीव श्रावक जघन्य त्रणकाले पूजा करे त्रणकाल चैत्यवंदन करे, एकवार पडिक्कमणुं करे ते ५ वार चैत्यवंदन करे, जे बेटंक पडिक्कम करे तेने 9 वार चैत्यवंदन थाय ॥" तथा पूर्वाचार्योना ग्रंथोमां प्रतिक्रमणना विधिमां पण प्रतिक्रमणना श्राद्यंतमां सामान्य प्रकारे एटले जघन्यो तुष्ट चैत्यवंदना कही बे ते केटलाएक पाठ नव्यजीवाने ज्ञापन करवाने लिखिए बीए ॥ प्रथम सुविहित श्री देवसूरिजी कृत यतिदिनचर्या ॥ ॥ पाठः ॥ गाथा ॥ जिावंदणमुनिमणं सामाइ अवका स्सग्गो देवसि श्रारं अणुकम्मसोइच चिंतेजा ॥ २९ ॥ जिनवंदनं करोति चैत्यवंदनं कृत्वा देववंदनं करोति देववंदनं कृत्वा गुरुवंदनं करोति यथा जगवन्नहमित्यादि ॥ ए पाठमां प्रतिक्रमणना प्रारंभमां
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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