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________________ परिजेदः १४ सयलाइयारा सिझाणथयंपढतितोपन्ना पुवनणिएणवि हिणा किश्कम्मदितिगुरुणोठ ॥४६ ॥ सुकयंत्राणत्तिं पिव लोएकाकणसुकयकिइकम्मा वढतियाथुन गुरुथु गहणेकएतिनि ॥४७॥थुश्मंगसंमिगुरुणा नचरिएसेस गाथुबिंति चितित थोवं कालंगुरूपायमूलमि ॥ ७ ॥ इतिवचनात्. ॥ अर्थः ॥ संदेपे नीचे प्रमाणे ने. मांझलां करीने व्याघात न होय तो गुरु साथे अने व्याधात होय तो गुरुनी आझा लेने करेमिनंते यावत् कानस्सग्ग करे तेमां अर्थ चिंतवे, गुरुवावे त्यारे ज्ञान दर्शन चारित्रमा जे अतिचार लाग्या ते चिंतवे, पड़ी लोगस्स कहे, मुहपत्ति पडिलेहे, वांदणा दे दिवसना अतिचार आलोग्ने गुरुदत्त प्रायश्चित्तपडिवकिने मंगलपूर्वक प्रतिक्रमण सूत्र जणे, पनी वांदिने अनुनिह इत्यादिक कहीने आचा दिक सर्वने खमावे परी चारित्राचार शझिने अर्थे पच्चास श्वासोश्वासनो कानस्सग्ग करे, ते कानस्सग्ग पारी लोगस्स कही दर्शन अतिचार शुझिने अर्थे पच्चीस श्वासोश्वासनो कानस्सग्ग पारीने श्रुतस्तव कहे, पडी झानाचार शुहिने अर्थे पचीस श्वासोश्वासनो काउस्लग करे पनी सिझा बुझाणं कहे पड़ी मुहपत्ति पडिलेहीने वांदणां दे वर्धमान थुइ पहेली गुरु कहे पठी सर्व
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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