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________________ ५१४ परिजेदः १३ श्रावकना घरमां शानदर्शन संयुक्त जो दास पण थान तो सारूं, पण मिथ्या मोहमतिवालोराजाचक्रवर्ति पण मां थान, इत्यादि परलोक नावनाए सम्यग् दृष्टि देवोनी पासे श्रावक जन समाधि बोधि मागेजे; पण चतुर्थ स्तुतिमां प्राये ठाम नाम इह लोकार्थ पुजनीक आशाए देवादिकनी पासे जाचना करे , तेम करता नथी तेथी तत्ववेत्तानने अर्थात् जाण श्रावकोने पूजा प्रतिष्टादि तथा विघ्न निराकरणादि कारण विना पू. वोक्त देवतानना तप, पूजन, कायोत्सर्ग अने थुइ करवां, जैन सिद्धांत न्याये सिथतां नथी; केमके श्री जगवतीजीप्रमुख श्रीगणधरकत सूत्रोमां तथा श्री आवश्यक नियुक्ति प्रमुख पूर्वधराचार्योना करेला आगममां "असहिध देवा" इत्यादि वचनथी चारनिकायना देवतानो सहाय लेवो तथा वांदवा पूजवा निषेध्या डे; तदनुयायि पूर्वधर पश्चात्काल वर्ति वहुश्रुत आचार्योना ग्रंथोमां पण ॥ वंदणवत्तियाए इत्यादि न पठ्यते तेषामविरतत्वात् ॥ इत्यादि वचनथी पूर्वोक्त सम्यग दृष्टि देवताने पण वांदवा पूजवा निषेध्या डे, ने चोथी थुश्मां तो ते पूर्वोक्त देवतानने वांदवा पूजवा तथा तेननी सहाय याचना प्रमुख कह्यांडे. ॥प्रश्न॥ ए पूर्वोक्त देवतानी साहाय्य लेवी, तथा ते
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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