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परिजेदः १३ श्रावकना घरमां शानदर्शन संयुक्त जो दास पण थान तो सारूं, पण मिथ्या मोहमतिवालोराजाचक्रवर्ति पण मां थान, इत्यादि परलोक नावनाए सम्यग् दृष्टि देवोनी पासे श्रावक जन समाधि बोधि मागेजे; पण चतुर्थ स्तुतिमां प्राये ठाम नाम इह लोकार्थ पुजनीक आशाए देवादिकनी पासे जाचना करे , तेम करता नथी तेथी तत्ववेत्तानने अर्थात् जाण श्रावकोने पूजा प्रतिष्टादि तथा विघ्न निराकरणादि कारण विना पू. वोक्त देवतानना तप, पूजन, कायोत्सर्ग अने थुइ करवां, जैन सिद्धांत न्याये सिथतां नथी; केमके श्री जगवतीजीप्रमुख श्रीगणधरकत सूत्रोमां तथा श्री आवश्यक नियुक्ति प्रमुख पूर्वधराचार्योना करेला आगममां "असहिध देवा" इत्यादि वचनथी चारनिकायना देवतानो सहाय लेवो तथा वांदवा पूजवा निषेध्या डे; तदनुयायि पूर्वधर पश्चात्काल वर्ति वहुश्रुत आचार्योना ग्रंथोमां पण ॥ वंदणवत्तियाए इत्यादि न पठ्यते तेषामविरतत्वात् ॥ इत्यादि वचनथी पूर्वोक्त सम्यग दृष्टि देवताने पण वांदवा पूजवा निषेध्या डे, ने चोथी थुश्मां तो ते पूर्वोक्त देवतानने वांदवा पूजवा तथा तेननी सहाय याचना प्रमुख कह्यांडे.
॥प्रश्न॥ ए पूर्वोक्त देवतानी साहाय्य लेवी, तथा ते