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________________ परिच्छेदः ७ २०४ संतिनिमत्ते जिसंतो कहे, अथवा त्रण थुइ वर्द्धमान कही, ते हृयिमान कहे. एमां पण त्रण थुइ कही. तथा त्र्यावश्यकलघुवृत्तिमां पण त्रण थुइनो अधिकार ते पाठ -- ततश्चैत्यगृहे यागत्य चैत्यानी वंदित्वा शांतिनिमित्तं शांतिस्तवं पठित्वां स्तुतिश्व हीयमाना नपित्वा १ प्राचार्योंतिके प्रागत्य प्रविधिपारिष्टापनिकी कायोत्सर्गः कार्यः ॥ अर्थ - पी चैत्यघरे याविने एटले दे' रे यावी चैत्य वांदिने शांतिने अर्थे शांतिस्तव नगीने स्तुति हीयमान कहीने एटले वर्धमान करता हता ते हीयमान कहेवी पढी याचर्यनी पासे यावी यविधिपारिठावणीनो का - उसग्ग करे, एमा हीयमान कहेवाथी त्रिजी थुई पेहेली कवी एमबे, तथा श्रावश्यकाऽवचूरी तेमां पण चैत्यमां त्रण थुइ कही. ते पाठ - तत श्रागम्य चैत्यगृहे विपर्यस्तंदेवा वंदित्वाचार्यपार्श्व विधि पारिष्टापनिकायाः कायोत्सर्गः क्रियते ॥ अर्थ - पी खावीने दे रे अवलादेव वांदीने एटले त्रीजी थुइ पहेली कहे एम विपरीत देव वांदीने थाचार्यपासे यावि विधिपरत्वानो काठसग्ग करे, एमां
SR No.010841
Book TitleChaturth Stuti Nirnay Shankoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
PublisherMarudhar Malav ane Gurjar Deshna Sadharmik Sangh
Publication Year1890
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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